बदलते समय के साथ इंसान बदल जाते हैं, ठीक वैसे ही बदलती सरकारों के साथ फैसले बदल जाते हैं.
हर सरकार अपने पॉवर का उपयोग अपने लिए, अपनों के लिए और अपने तरीके से करती है. फिर बात सुरक्षा की ही क्यूँ ना हो? सुरक्षा का पैमाना भी बदलती सरकार के साथ बदल ही जाता है.
अब Z+ सिक्यूरिटी की ही बात कर लें.
Z+ सिक्यूरिटी भारत की सबसे VVIP सुरक्षा, जो की गिने चुने लोगों को ही मिलती है. लेकिन इस सुरक्षा को देने का पैमाना भी सरकार के साथ बदल जाता है. मतलब पहली सरकार को जो पैमाना सही लग सकता है, दूसरी के लिए वही पैमाना गलत भी हो सकता है.
हम शुरुआत करते हैं आर एस एस प्रमुख, मोहन भागवत को मिली Z प्लस सुरक्षा से. जिसमे उन्हें आधुनिक सुविधाओं से लैस CISF के 60 कमांडो सुरक्षा कवर देंगे. 17 अक्टूबर 2012 को तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मोहन भागवत को Z प्लस सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया था. लेकिन तब CISF ने मैनपावर की और गाड़ियों की कमी बताते हुए भागवत को सुरक्षा दे पाने पर अपनी असमर्थता जाहिर की थी.
अब भाजपा सरकार ने मोहन भागवत को वो सुरक्षा प्रदान की है.
नयी सरकार आने के बाद से जिन्हें Z प्लस सुरक्षा दी गयी उनमे प्रमुख नाम हैं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, नितिन गडकरी. लेकिन कई ऐसे हैं जिनकी Z प्लस सुरक्षा को हटा लिया गया है. 1984 सिख विरोधी दंगों में प्रमुख आरोपी रहे जगदीश टाईटलर और सज्जन कुमार को यूपीए की सरकार ने सुरक्षा प्रदान की हुई थी. साथ ही दामाद श्री रोबर्ट वाड्रा को भी ये सुरक्षा मिली हुई थी ( इसके आलावा भी वाड्रा को कई प्रकार की सुरक्षा और सुविधाएँ मिली हुई थी), लालू यादव और रमण सिंह (छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री ) इन सबकी Z प्लस सुरक्षा इनसे वापस ले ली गयी.
जहाँ देश में हर रोज़ क्राइम रिकॉर्ड बढ़ता ही जा रहा है, वहां आम लोगो की सुरक्षा अब तक पुख्ता नहीं हो पाई है. क्योंकि आम कभी खास नहीं बन पाता.. अगर इतनी ही सुरक्षा और चौकसी सड़कों पर भी होती तो शायद दिल्ली गैंगरेप नहीं होता और आये दिन सड़कों पर मर्डर, लूट पाट की खबरे सुनने को नहीं मिलती.
आम आदमी Z प्लस सिक्यूरिटी नहीं मांगता, सिर्फ सुरक्षित रहने का अधिकार मांगता है.
क्योंकि अगर Z प्लस मांग लिया तो उसका भी हाल जेड प्लस सिनेमा के असलम पंक्चरवाला की तरह ही हो जाएगा.