कबड्डी IS COOL यार..
लोकल ट्रेन में सामने की सीट पर बैठे दो टीनएज लड़के, मोबाइल फ़ोन पर कबड्डी का virtual गेम खेलते हुए कर बात कर रहे थे..
उसमे से एक लड़के ने दुसरे से कहा तूने Pro Kabddi League देखा क्या? अभिषेक की टीम मस्त खेल रही है..
उन दोनों को इस तरह बातें करते सुनना अच्छा तो लगा पर कुछ और बाते भी ध्यान आई, वो ये कि अगर ये लीग टूर्नामेंट का ट्रेंड न होता या मोबाइल और विडियो गेम्स न होते तो क्या ये युवा पीढ़ी इन सब खेलों को जान पाती?
आज की युवा पीढ़ी कैसे पागल है Glamorised Sports के पीछे
आज के वक़्त में इंडिया में क्रिकेट के बाद कोई गेम जो सबसे ज्यादा खेला या पसंद किया जाता है तो वो Subway Surfer, Candy Crush या मोबाइल में खेले जाने वाले इसी तरह के दुसरे कई virtual गेम्स है. जिसमे कसरत तो ज़रूर होती है पर सिर्फ दिमाग और उंगलियों की, और नतीजा 5 inch की स्क्रीन में डूबी जनरेशन जो अपनी उम्र से दोगुनी माप की तोंद लिए घूम रही है.
टेक्नोलॉजी में हुई इस प्रोग्रेस की सराहना तो ज़रूर होने चाहिए पर इससे उन नतीजों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता जो इस जनरेशन के लिए सही नहीं हैं.
इंडिया में लीग टूर्नामेंट का चलन अभी हाल ही के कुछ सालों में शुरू हुए हैं.
जिसमे क्रिकेट, टेनिस, हॉकी, और कबड्डी जैसे कई और खेलों को मिला कर, कुल 6 लीग टूर्नामेंट हर साल किये जाते है. इस तरह के मैच कराने का मकसद भले ही पूरी तरह से प्रोफेशनल हो, पर कही न कही ये आज की यूथ को स्पोर्ट्स की तरफ खीच भी रहा है. कई सेलिब्रिटीज़, एक्टर और बिज़नेसमैन के जुड़ जाने से इन खेलों में लगे ग्लैमर के तड़के को भी नकारा नहीं जा सकता. साथ ही पिछले कुछ सालों में खिलाडियों को मिलने वाले स्पेशल ट्रीटमेंट जो उन्हें बड़ी चैंपियनशिप में भारत को रैंक दिलाने के बाद मिला हैं आकर्षण की दूसरी वजह भी बनी हैं.
पर फिर भी एक टीस मन में उठती है कि अब गली-मुहल्लों में दोपहर के वक़्त होने वाले खेल के शोर बहुत कम ही सुनने मिलते है.
अब सुबह से खेलने निकली टोली जब थक कर घर लौटती हैं तो शर्मा आंटी की रसना पार्टी नहीं होती. किसी अंडर-कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग के सामने पड़े रेत के ढेर में कबड्डी वो मैच नहीं होते, अब पसीने से भीगे मुहल्ले के बच्चे कॉलोनी के गार्डन में एक साथ नहीं नहाते. अब गर्मी की छुट्टिया तो लग जाती है पर ये सारा समय कंप्यूटर और मोबाइल के सामने ही निकल जाता है.
एक वक़्त था जब खेलों को सिर्फ कुछ जिस्मानी कसरत या समय कटाने के साधन से ज्यादा नहीं समझा जाता था, पर आज खेलों को भी एक करियर के तौर पर देखा जाने लगा हैं.
“पढोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे ख़राब” वाली कहावत अब बस कहावत ही नज़र आती है.
कई स्पोर्ट्स एकेडमी और क्लब्स अब इन सभी खेलों की प्रोफेशनल ट्रेनिंग भी देने लगे है.
बस ज़रूरत है तो आज की जनरेशन को अपने नज़रिए में कुछ तबदीली लाने की और अपने उस “वर्चुअल-वर्ल्ड” से बाहर आने की जो उनके चंद inch के स्क्रीन से कई गुना बड़ा हैं.
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