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जंगले के शेर से कम नहीं था – साथी की गद्दारी से हुआ शहीद – टूटा भारत आज़ादी का सपना

भारत की आज़ादी के सिपाहियों की बात आती है तो गिने चुने नाम ही याद आते है. सबसे पहले महात्मा गांधी का नाम आता है और उसके बाद शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, तिलक, सुभाष चन्द्र बोस आदि के नाम आते है.

ऐसे कितने ही नाम है जो भुलाये जा चुके है लेकिन उनका योगदान भारत की आज़ादी की लड़ाई में भुलाया नहीं जा सकता.

आज ऐसे ही एक भूले बिसरे क्रांतिकारी के बारे में आपको बताते है.

यतीन्द्र नाथ मुखर्जी शायद देश के सबसे बलिष्ठ क्रांतिकारियों में से एक थे और उनसे बड़े बड़े अंग्रेज़ अधिकारी भी थर थर कांपते थे.

यतीन्द्र ने एक बार एक रॉयल बंगाल टाइगर को भी एक खुकरी से मार गिराया था. जिसके लिए अँगरेज़ सरकार ने भी उनकी वाह वाही की थी. ये भी कहा जाता है कि शारीरिक बल के मामले में यतीन्द्र 8-10 लोगों पर भी भारी पड़ते थे. एक बार उन्होंने निहत्थे 8 अंग्रेजों को पीट दिया था.

दोस्तों के बीच यतीन्द्र बाघा जतिन के नाम से प्रसिद्द थे. ये नाम उन्हें बाघ को मार गिराने के बाद मिला था.

यतीन्द्र बचपन से ही खेल और शारीरिक सौष्ठव की तरफ आकर्षित हो गए थे. 11 साल की उम्र में ही उन्होंने एक बिगडैल घोड़े पर काबू पाकर पूरे इलाके में अपनी साख जमा ली थी.

थोड़े बड़े होने पर वो स्वामी विवेकानंद के सम्पर्क में आये और उनके विचारों से प्रभावित हुए. इसके बाद यतीन्द्र ने युवा क्रांतिकारियों की संगठित सेना बनाने का विचे किया.

महर्षि अरविंदो के समरक में आने के बाद इस विचार ने मूर्त रूप लिया और भारतीय क्रांतिकारियों के सबसे बड़े संगठन अनुशीलन समिति की स्थापना की गयी.

प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के सामने पीटा अंग्रेजों को 

एक बार प्रिन्स ऑफ़ वेल्स भारत के दौरे पर थे. उनकी एक सभा में कुछ अंग्रेजोने ने वह बैठी महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की. उसके बाद यतीन्द्र नाथ का पारा चढ़ गया और उन्होंने प्रिन्स के सामने ही उन अंग्रेजों को धुन दिया. ये दृश्य देखकर सब आश्चर्यचकित हो गए.

अंग्रेजों की गलती होने के कारण जतिन को छोड़ दिया गया.

इसके बाद कई वर्षों तक यतीन्द्र नाथ अलग अलग तरह की क्रांतिकारी गतिविधियों में लगे रहे थे. वो अलग अलग नाम से अलग अलग समूह चलते थे और कभी सामने नहीं आते थे.

अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने की लाख कोशिश की पर हर बार बिना सुबूतों के वो बचकर निकल जाते थे. धीरे धीरे जतिन काफी सम्मानित क्रांतिकारी बन गए थे.

यतिन की पहुँच अब सिर्फ भारत ही नहीं रंगून और सिंगापोर तक हो गयी थी. उन्होंने अब सैन्य विद्रोह करवाने शुरू कर दिए. इन सबके साथ ही साथ दुसरे देशों से हथियार मंगवाने के लिए उन्होंने कई फर्जी कम्पनियाँ भी कड़ी कर दी.

जिनके मालिक अधिकतर विदेशी थे. इस कारण ब्रिटिश सरकार को कोई संदेह भी नहीं होता था.

जतिन के द्वारा हथियार मंगवाने का पता एक डबल एजेंट को लग गया और उसने हथियारों के जखीरे की खबर अमेरिका और इंग्लॅण्ड को दे दी. जतिन के हथियार पकडे गए और पूरी ब्रिटिश हुकुमत जतिन के पीछे लग गयी.

जतिन को अंदेशा हो गया की क्रांति असफल हो चुकी है, अंग्रेजों ने उनपर भारी इनाम रखा. इसके चलते जतिन का छुपना अब मुश्किल हो गया था.

अंग्रेजो से लड़ते लड़ते यतीन्द्र नाथ शहीद  हो गए.

उनकी मृत्यु के बाद चेक गणराज्य के गुप्तचर ने कहा था “यदि जतिन की योजना सफल हो जाती तो भारत 1915 में ही आज़ाद हो जाता और यतीन्द्र नाथ राष्ट्रपिता होते ”

यतीन्द्र की बहादुरी और नेतृत्व क्षमता का लोहा अँगरेज़ भी मानते थे. उस समय के एक जज ने कहा था “यदि यतीन्द्र जीवित होते तो उनमें पूरे विश्व का नेत्रित्व करने की क्षमता थी.”

चार्ल्स टेगोर्ट ने तो ये भी कहा था कि यदि हथियारों की वो खेप जर्मनी से भारत पहुँच जाती तो विद्रोह को दबाना नामुमकिन हो जाता और अंग्रेजों को भारत से जाना पड़ता.

यतीन्द्र नाथ मुखर्जी जैसे महान क्रांतिकारी को देश के बच्चे बच्चे को जानना चाहिए लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है कि बंगाल के सिवा भारत के इस वीर शहीद को लोग नहीं जानते.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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