यशस्वी जायसवाल – इन दिनों इंडिया अंडर-19 टीम श्रीलंका के दौरे पर गई हुई है।
इंडिया अंडर-19 टीम में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर के सिलेक्शन की वजह से इस सीरीज की कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है। मगर अंडर-19 टीम में मुंबई की ओर से अर्जुन के अलावा भी एक अन्य खिलाड़ी है, जिसके बारे में सभी को जानना चाहिए।
17 वर्षीय मिडिल ऑर्डर बैट्समैन यशस्वी जायसवाल के इंडिया अंडर-19 टीम में शामिल होने का सफर इतना आसान नहीं था। यूपी से मुंबई आए यशस्वी के पास ना सोने के लिए जगह थी और ना ही भरपेट खाना। इन परेशानियों के बावजूद क्रिकेट के लिए जुनून के चलते यशस्वी जायसवाल इस मुकाम तक पहुंच पाए।
सभी को यशस्वी जायसवाल की यह प्रेरणादायक कहानी जरूर पढ़ना चाहिए।
यशस्वी जायसवाल –
क्रिकेट का सपना लाया मुंबई
यशस्वी जायसवाल, उत्तर प्रदेश के भदोही में एक छोटे से दुकानदार के दो बेटों में दूसरे नंबर के थे। क्रिकेट की फील्ड में करियर बनाने के लिए यशस्वी मुंबई आ गए। उनके पिता ने भी विरोध नहीं किया, क्योंकि उनके लिए परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा था। मुंबई के वर्ली में यशस्वी के एक अंकल रहते थे। लेकिन उनका घर छोटा होने की वजह से यशस्वी को एक डेरी में रात गुजारनी पड़ती थी।
बाहर फ़ेंक दिया सामान
यशस्वी दिनभर क्रिकेट खेलने के बाद रात को डेरी में जाकर सो जाते थे। इसलिए एक दिन डेरीवालों ने तू कुछ काम नहीं करता कहते हुए यशस्वी का सामान बाहर फेंक दिया। इस युवा क्रिकेटर के अंकल ‘मुस्लिम यूनाइटेड क्लब’ में मैनेजर थे। उन्होंने क्लब के मालिकों से गुजारिश करके वहां एक टेंट में यशस्वी के रहने की व्यवस्था करवाई। अगले तीन साल तक यशस्वी ने यही अपनी रातें गुजारी।
बेचते थे पानीपुरी
इस युवा खिलाड़ी के पिता कभी-कभी कुछ रुपए भेज दिया करते थे, लेकिन उनसे गुजारा नहीं हो पाता था। इसलिए यशस्वी जिस आजाद मैदान में क्रिकेट खेलते थे, वही रामलीला के दौरान पानी-पुरी भी बेचते थे। यशस्वी ने एक इंटरव्यू में बताया, “रामलीला के दौरान मेरी अच्छी कमाई हो जाती थी। मैं प्रार्थना करता था कि मेरे टीम मेट्स वहां पानी पुरी खाने ना आए। कभी-कभी वो आ जाते थे तो उन्हें सर्व करने में बहुत बुरा लगता था।”
यह युवा क्रिकेटर कुछ रुपए कमाने के लिए बड़े खिलाड़ियों के साथ भी खेलता था।
रहना पड़ता था भूखा
टेंट में यशस्वी ग्राउंड्समैन के साथ रहते थे। वहां खुद खाना पकाकर खाना होता था। यशस्वी का काम रोटी बनाने का था। वहां बिजली नहीं थी, इसलिए हर दिन कैंडल लाइट डिनर होता था। जब ग्राउंड्समैन के बीच झगड़ा होता तो भूखे पेट सोने की नौबत आ जाती थी।
यशस्वी के अनुसार, “मैं हमेशा देखता था कि मेरी उम्र के लड़के खाना लाते हैं या उनके पेरेंट्स उन्हें बड़े लंच देकर जा रहे हैं। मेरे लिए कोई नाश्ता नहीं होता था। किसी के पास जाकर उससे नाश्ता खरीदने के लिए विनती करनी पड़ती थी।”
बिजली ना होने की वजह से टेंट के अंदर भयानक गर्मी होती थी, इसलिए बाहर सोना पड़ता था। मगर एक बार यशस्वी को किसी कीड़े ने आंख के पास कांट लिया था और उस घटना के बाद से उन्हें मजबूरी में टेंट के अंदर ही सोना पड़ता था।
लोकल कोच ने बढ़ाया हाथ
मुंबई के सांता क्रूज में क्रिकेट एकेडमी चलाने वाले ज्वाला सिंह एक सुहानी सुबह की तरह यशस्वी की जिंदगी में आए। ज्वाला खुद यूपी से मुंबई आए थे और अभावों में रहे थे। इसलिए यशस्वी में वो खुद को देख पा रहे थे। यशस्वी से पहली मुलाकात को याद करते हुए वो कहते हैं, “मैं साल 2013 में आजाद मैदान गया था और वहां यशस्वी को प्रैक्टिस करते हुए देखा था। तब वो 11-12 साल का होते हुए भी A डिवीजन बॉलर्स का बहुत अच्छे से सामना कर रहा था। वो गिफ्टेड है। उसने पांच सालों में 49 शतक जड़े हैं।”
ज्वाला सिंह ने यशस्वी की कमियों को पहचानकर उन पर मेहनत की और युवा खिलाड़ी के रहने के लिए व्यवस्था भी की।
कुछ समय पहले सचिन तेंदुलकर ने भी यशस्वी को अपने घर मिलने बुलाया था और युवा खिलाड़ी के सारे डाउट क्लियर किए थे। यशस्वी, तेंदुलकर से काफी प्रभावित हुए थे।
बहुत आगे जाएगा
यशस्वी के भविष्य को लेकर ज्वाला सिंह का कहना है, “वो एक टैलेंटेड खिलाड़ी है। वो अभी महज 17 साल का है और बहुत अच्छा खेल रहा है। वो बहुत आगे जाएगा। उसके अंदर खास क्षमताएं हैं।”
इंडिया अंडर-19 कोच सतीश सामंत का भी मानना है कि, “उसके पास टैलेंट है। अगर वो अपना फोकस इसी तरह बनाए रखता है तो वो मुंबई से अगला बड़ा नाम होगा।”
यदि यशस्वी जायसवाल के कोच उन पर इतना भरोसा रखते हैं तो वो वाकई एक बड़े खिलाड़ी बनेंगे। आपको यशस्वी जायसवाल की कहानी पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर कीजिएगा।
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