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याकूब मेमन हो या गुजरात के अपराधी सब है सजा के अधिकारी, उनको बचाना अपने आप में है अपराध

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ऐसे ही कुछ सवालों पर नज़र डालिए

पहला सवाल – जब बी रमण जानते थे या यूँ कहे ऐसा मानते थे कि याकूब का अपराध फांसी जितना जघन्य नहीं है तो उन्होंने 2007 या उसके बाद ऐसा क्यों नहीं कहा?

दूसरा सवाल – सब जानते है दाऊद और टाइगर की ताकत को और उन्होंने याकूब को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया होगा तो फिर इतने सालों तक वो इतने महत्वपूर्ण दस्तावेज को कोर्ट में क्यों नहीं पेश कर सके जिसे एक वेबसाइट ने 8 साल के बाद प्रकाशित कर दिया.

तीसरा सवाल – मुंबई माफिया की ताकत से सब वाकिफ है, क्या ऐसा नहीं हो सकता जो लोग याकूब की फांसी पर रोक की मांग कर रहे है वो ये काम किसी लालच या दबाव में नहीं कर रहे?

चौथा सवाल– लोगों का कहना है कि प्रत्यक्ष हाथ नहीं था, इसका मतलब अपराधी तो टाइगर और दाऊद भी नहीं उन्होंने भी तो बम नहीं रखे थे. साजिश ही तो रची थी.

पांचवा सवाल – अगर याकूब इतना ही भला है तो वारदात से पहले क्यों खबर नहीं की. रिपोर्ट और सूत्रों के अनुसार याकूब ने ही हवाला के ज़रिये पूरे पैसे का लें दें किया था और हथियारों की सप्प्लाई भी करवाई थी. तो क्या ये सब अपराध नहीं है ? क्या इसी वजह से 257 लोगों की जान नहीं गयी.

छठा सवाल – कहा जा रहा है कि याकूब ने आत्मसमपर्ण इस समझौते पर किया था कि वो मुंबई बम काण्ड से जुड़े महत्वपूर्ण सुराग देगा. जिस तरह आज भी मुख्य अभियुक्त कानून की पकड़ से दूर है उस हिसाब से ये तो नहीं लगता कि कुछ महत्वपूर्ण बताया है याकूब ने .

सातवाँ सवाल – वो लोग जो याकूब की फांसी को धर्म से जोड़ रहे है क्या ये वही लोग नहीं है जो चिल्लाते फिरते है कि आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं. अब बताइए अगर आतंकवाद का मज़हब नहीं तो फिर एक आतंकवादी के मज़हब को लेकर नाटक क्यों ? सिर्फ वोट बैंक के लिए ?

याकूब मेमन हो या गुजरात के अपराधी सब है सजा के अधिकारी, उनको बचाना अपने आप में है अपराध

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