स्तन पर टैक्स …
क्या आप कल्पना भी कर सकते है ऐसी बेहद और बेवकूफी भरी बात की ?
लेकिन ये बात सच है 18 वीं और 19 वीं सदी में दक्षिण भारत में दलित महिलाओं पर स्तन कर लगाया जाता था.
उस समय दलित महिलाएं खुले बदन रहा करती थी. इस कर के अनुसार हर महिला को अपने स्तन के आकार के हिसाब से टैक्स देना पड़ेगा.
साथ साथ हर महिला को चाहे वो चाहे या ना चाहे अपने स्तन खुला रखना पड़ेगा.
दलितों पर ये कर ऊँची जाती के लोगों द्वारा लगाया गया था. ये कर ना केवल बहुत ही गलत था अपितु ये अमानवीय भी था.
केरल में इस कर को बहुत सख्ती से लागू किया गया था और इस कर को नहीं देने पर या आदेश नहीं मानने पर सजा दी जाती थी.
ऐसा नहीं कि सिर्फ यही एक कर था इसके अलावा दलित महिलाओं को सजने, आभूषण पहनने और रंगीन कपडे पहनने के लिए भी टैक्स देना पड़ता था, पुरुषों की स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं थी दलित पुरुषों को मूंछ रखने के लिए कर देना पड़ता था.
ऊँची जाति वाले लोगों द्वारा ये कर लगाने का कारण सिर्फ अपमान करना ही नहीं था अपितु वो चाहते थे कि इस तरह के करों के चक्कर में दलित लोग हमेशा क़र्ज़ में ही डूबे रहे.
ज़रा कल्पना कीजिये ऐसा कोई समाज कैसा हो सकता है जहाँ दलित महिला को अपने स्तन ढकने की इज़ाज़त ना हो और अगर वो स्तन ढकना चाहे तो भी उसे कर देना पड़े.
19वीं सदी में एक बहादुर महिला के बलिदान ने इस घटिया कर प्रणाली को बंद करवा दिया.
200 साल पहले उस महिला ने समाज के सबसे शक्तिशाली वर्ग के विरोध में आवाज़ उठाई और अकेले ही अपनी जान देकर भी हजारों महिलाओं और उनकी आने वाली पीढ़ियों को इस अमानवीय प्रथा के कैद से आज़ाद करवाया.
नांजलि नामक इस महिला ने इस कर का विरोध करते हुए अपने स्तन से कपडे हटाने से मना किया और इस एवज में कर देने से भी इनकार कर दिया.
इस लड़ाई में यदि कोई उसका साथी था तो वो था उसका पति.
विरोध के लिए उसके पति ने सबके सामने मंच पर आत्महत्या कर ली. लेकिन इतना होने के बाद भी वहां के बड़े लोगों को कोई असर नहीं पड़ा कानून तोड़ने के जुर्म में उन लोगों ने नेंजली के स्तन काट दिए.
अत्यधिक रक्त बहने की वजह से उसकी मौत हो गयी.
लेकिन नन्जली का बलिदान व्यर्थ नहीं गया, उसकी मौत के बाद गाँव के दलितों ने उच्च वर्ग के काला कानून के खिलाफ आवाज़ उठाई जिसके फलस्वरूप त्रावणकोर केरल में इस घटिया कर को बंद किया गया.
नांजलि तो चली गयी लेकिन 200 साल पहले भी उसने जो उदहारण प्रस्तुत किया वो साहस, समानता, आत्म सम्मान का बहुत बड़ा अध्याय है साथ ही अन्याय के विरुद्ध लड़ने का भी उदहारण है.
आज अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम नमन करते है नांजलि और उसके बलिदान को जिसने एक अमानवीय समाज के बेहूदा कर को खत्म कर आने वाली पीढ़ियों को एक नयी रोशनी दी.
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