दिल्ली में महिला सुरक्षा – महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से दिल्ली पहले से ही सबसे बेकार शहर है, यहां दिन-दहाड़े लड़कियों और महिलाओं के साथ कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता.
जब महिलाएं दिन में ही सुरक्षित नहीं है तो रात की तो बात ही छोड़ दीजिए और अब लड़कियों के मामले में एक चौंकाने वाली खबर आई है जिससे एक बार फिर साफ हो जाता है कि देश की राजधानी महिलाओं और लड़कियों के लिए सबसे बेकार शहर है.
इसलिए तो इसे रेप कैपिटल कहा जाता है और ये बात बिल्कुल सच है.
वैसे छेड़छाड़ और रेप के साथ ही लड़कियों की तस्करी के मामले में भी दिल्ली का नंबर पहला आता है. दिल्ली पुलिस के साल 2017 के आंकड़ों पर गौर करें तो राजधानी से रोजाना करीब 11 लड़कियां गायब हो रही हैं.
अलायंस फॉर पीपल्स राइट्स दिल्ली की हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट बताती है कि गायब होने वाली लड़कियों में सबसे ज्यादा संख्या 12 से 18 साल की लड़कियों की है. इन लड़कियों की मानव तस्करी की जाती है. इस उम्र की लड़कियों की तस्करी के पीछे भी कई कारण हैं. आंकड़े बताते हैं कि 2017 में 0-8 साल की 213 लड़कियां गायब हुईं. जबकि 8 से 12 साल की 166 लड़कियां लापता हुईं.
वहीं 12-18 साल की लड़कियों के गायब होने की संख्या एकाएक बढ़कर 3536 हो गई. इस उम्र की लड़कियों के गायब होने की संख्या गायब लड़कों के दोगुने से भी ज्यादा है.
दिल्ली में महिला सुरक्षा – आपको बता दें कि गायब हुई कुल 3915 लड़कियों में से 2017 में सिर्फ 2560 लड़कियों का ही पता चल पाया. बची 1359 लड़कियों के बारे में पुलिस को कुछ पता नहीं चल सका.
ऐसे में इन लड़कियों के मानव तस्करी में इस्तेमाल किए जाने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि दिल्ली पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि 2016 के मुकाबले लड़कियों और लड़कों के लापता होने की संख्या में कमी आई है, लेकिन गायब हुए बच्चों के मिलने की संख्या 2016 से 2017 में कम रही, यानी बच्चे तो कम गायब हुए लेकिन मिले भी कम.
देश की राजधानी में जहां लोगों को खुद को सुरक्षित महसूस करना चाहिए, वहीं लोग सबसे ज़्यादा असुरक्षित हैं.
महिलाएं, लड़कियां और बुज़ुर्ग ही नहीं दिल्ली में लगता है मानो हर कोई असुरक्षा के घेरे में जी रहा है.
दिल्ली में महिला सुरक्षा – इसके बावजूद यहां की सरकार को लोगों की सुरक्षा से ज़्यादा चिंता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की रहती है. इतने अपराधों के बावजूद क्या दिल्ली पुलिस को और मज़बूत बनाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया.