शहरो की ज़िन्दगी कुछ अलग ही होती है.
सभी छोटे बड़े व्यस्त होते है. यहाँ पैसे कमाने से किसी को फुर्सत नहीं मिलती.
वैसे इस महंगाई में सर्वाइव करने के लिए बहोत पैसे कमाने की ज़रूरत है, इसलिए मर्दों के साथ-साथ अब महिलाएं भी जॉब करने लगी है.
आज हम आपको बताएंगे शहरों की कामकाजी महिलाएं और उनकी ज़िन्दगी के बारे में! दिनभर की उनकी दिनचर्या किस तरह की होती है.
1 . सुबह 5 बजे से 8 बजे तक की घरेलु शिफ्
कामकाजी महिलाएं सवेरे 5 बजे उठती है और फिर नित्यकर्म से निवृत्त होकर रसोईघर में जाती है. गैस के चूल्हे पर दूध चढ़ाकर आटा गूंधती है. जल्दी से रोटियां या परांठे सबके लिए बनाती है. बच्चों का और पति का लंच पैक करती है. इसके बाद बच्चों को जगाती है. उन्हें स्कूल के लिए तैयार होने में उनकी मदद करती है. बच्चों को दूध और नाश्ता देने के बाद उन्हें पानी की बोतलें दे कर स्कूल भेजती है. तुरंत खुद भी नहाकर तैयार होती है. अपना लंच डिब्बे में डालकर थोडा चाय या दूध पीती है. कंधे पर बैग लटकाए, अपने पति को जगाकर, काम पर जाने के लिए बस स्टॉप तक दौडती है.
2 . 9 बजे से 5 बजे तक की काम की शिफ्ट
कंधे पर बैग लटकाए, अपने पति को जगाकर, काम पर जाने के लिए बस स्टॉप तक दौड लगाती है. भीड़ से भरी हुई बस से जूझती हुई वह अपने दफ्तर पहुँचती है. अगर थोडा लेट हुई तो सीनियर की या बॉस की डांट सुनती हुए अपनी काम में लग जाती है.
3 . शाम 6 बजे से 8 बजे तक की शिफ्ट
दफ्तर का काम खत्म करने के बाद कामकाजी महिला थकी हारी घर पहुँचती है. फिर तुरंत रसोईघर में जाकर बच्चों के लिए चाय पकौड़े तलने में जुट जाती है. बच्चो की दिनभर की घटनाएं, शिकायतें व परेशानियां सुनती है, समझती है और समाधान भी करती है. ये सब करने के बाद आधे घंटे आराम करती है. स्वयं खाना खाकर कुछ पल आराम करती है. बच्चों को खेलने के लिए भेजकर वह कपडे धोती है. बाज़ार जा कर घर का कुछ जरूरी सामान लाती है. पति के घर आने के बाद उन्हें भी चाय और पकौड़े परोसती है.
4 . 8 बजे से 10 बजे तक की शिफ्ट
8 बजे के बाद कामकाजी महिलाओं का काम फिर शुरू हो जाता है. सब्जी छीलना-काटना और पकाना. रोटी बनाते हुए सभी को खाना परोसना. उसके बाद खुद खाना खाकर रसोईघर समेटना. अगले दिन की भी कुछ तैयारी करके रखना, तब तक रात के दस तो बज ही चुके होते हैं.
5 . पतिव्रता की ड्यूटी करना
रात 10 बजते ही थक हारकर जब कामकाजी महिला बिस्तर पर आती है, तब उन्हें शादीशुदा ज़िन्दगी का भी ख्याल रखना होता है. रात 10 बजे के बाद का समय पति के लिए होता है. पति की बातें सुनना, अपनी बातें उन्हें सुनाना, जैसी सभी चीजे उन्हें करनी होती है.
ये थी शहरों की कामकाजी महिलाएं और उनकी ज़िन्दगी – कामकाजी महिलाओं का पूरा दिन व्यस्तता भरा होता है. शहरों की कामकाजी महिलाएं दिनभर कोई न कोई का काम करती ही रहती है. एक ख़ास बात ये है कि वे इन सभी कामो को बड़े मन से करती है और व्यस्त होने की बावजूद मस्त रहती है.
आप भी कहेंगे – शहरों की कामकाजी महिलाएं सुपर वूमन से कम नहीं है
जय हो भारतीय नारी की, जय हो नारी शक्ति की….