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इस स्वतंत्रता दिवस पर ज़रा याद करते हैं इन वीरांगनाओं की कुर्बानी जिनसे अंग्रेज भी थे डरते

वीरांगनाओं की कुर्बानी

वीरांगनाओं की कुर्बानी – ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का…

स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के आने से एक सप्ताह पहले ही यह गाना हर कहीं बजने लगता है। इन विशेष दिनों में दिए जाने वाले भाषण में देश की वीरों और छत्रपति शिवाजी की बात भी हर कोई करता है।

लेकिन देश की वीरांगनाओं की कुर्बानी उनके जन्मदिवस के अलावा शायद ही कोई याद करता हो। इन विशेष दिनों में तो बिल्कुल भी नहीं।

खैर आज का आर्टिकल जेंडर इक्विलिटी पर नहीं बल्कि देश की उन वीरांगनाओं पर है जिनके आगे औरंगजेब से लेकर शिवाजी तक सिर झुकाते थे।

वीरांगनाओं की कुर्बानी –

बेलावाड़ी मल्लम्मा

वीरांगनाओं की कुर्बानी

सोड राजा मधुलिंग नायक की पुत्री और बेलावाड़ी की रानी बेलावाड़ी मल्लम्मा से हर कोई डरता था। इन्हें लोग सावित्री बाई के नाम से भी पुकारते थे। यह विशेष तौर पर लिंगातों की रानी थी और अपनी जनता की भलाई के लिए किसी से भी दुश्मनी मोल लेती थीं। बेलावाड़ी मल्लम्मा देश की ऐसी पहली वीरांगना थीं जिन्होंने दुश्मनों को हराने के लिए उनके क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए एक टुकड़ी बनाई। इस टुकड़ी की विशेष बात यह थी कि इसमें सारी महिलाएं थीं। 17वीं शताब्दी में महिलाओं की इस टुकड़ी ने मराठाओं से लड़ाई लड़ी। एक प्रचलित कहानी के अनुसार जब यह मराठों से लड़ रही थीं तभी शिवाजी के एक सैनिक ने रानी के घोड़े की टांग काट दी। जिसके कारण रानी घोड़े से जमीन पर गिर गई और फिर उन्हें बंदी बना लिया गया। जब इन्हें शिवाजी के सामने पेश किया गया तो शिवाजी ने इनसे माफी मांगी और इन्हें व इनके राज्य को छोड़ दिया।

केलाड़ी चेन्नम्मा

औरंगजेब ने शायद ही किसी से हार मानी होगी। लेकिन उन्हें एक बार एक महिला से हारना पड़ा था। यह महिला थी केलाड़ी चेन्नम्मा। केलाड़ी, कर्नाटक का एक राज्य था। चेन्नम्मा शाही घराने से नहीं थी लेकिन उनका आत्मविश्वास उन्हें राजपरिवार की महिलाओं से भी अधिक था। इसी वजह से तो राजा सोमशेखर नायक ने इनसे विवाह किया था।

केलाड़ी चेन्नम्मा जितनी आत्मविश्वासी थी उतनी ही निडर भी थीं। एक बार इन्होंने औरंगजेब की सेना को भी हरा दिया था। यह किस्सा तबका है जब चेन्नम्मा ने औरंगज़ेब के विरुद्ध जाकर शिवाजी के दूसरे बेटे, राजाराम को पनाह दी थी। राजाराम को गिरफ्तार करने का मुगल आदेश निकाला गया था जिसके कारण उस समय कोई भी राजा-महाराजा राजाराम की मदद को आगे नहीं आ रहा था। ऐसे समय में केलाड़ी चेन्नम्मा ने राजाराम को पनाह दी। जब राजाराम को बंदी बनाने के लिए मुगल सेना उनके राज्य के तरफ आई तो रानी चेन्नम्मा ने उन्हें पराजित कर दिया। रानी की वीरता के आगे मुग़ल शासक को झुकना पड़ा।

अहिल्याबाई होल्कर

मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर का नाम तो हर कोई जानता है। 8 वर्ष की आयु में इनका विवाह खांडेराव होल्कर से हो गया और 21 वर्ष की आयु में ये विधवा भी हो गई थीं। पति के मृत्यु के बाद इन्होंने अपने बेटे को गद्दी पर बिठाया। लेकिन बदकिस्मती से कुछ ही दिन में उसकी भी मृत्यु हो गई।

अगर कोई और महिला होती तो वह पति और बेटे की मृत्यु के शोक से टूट जाती। लेकिन आहिल्याबाई टूटने वालों में से नहीं थीं। ये इंदौर की रानी बनी और पेशवा को हराकर घुटने टेकने पर मजबूर किया। इनकी प्रजा उन्हें बहुत प्यार करती थीं और ये भी अपनी प्रजा को अपने बेटे जैसा ही मानती थीं।

रानी चेन्नम्मा, कित्तूर

अंग्रेजों से लोहा लेने वाली रानी लक्ष्मीबाई का नाम तो पूरी दुनिया जानती है। लेकिन एक और रानी थी जो अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ती रही। कित्तूर की रानी चेन्नम्मा जिसने कित्तूर पर अधिकार करने के लिए आई अंग्रेजी सेना को एक बार हराया भी था। इस हार से बौखलाकर अंग्रेज दोगुनी संख्या में सेना लाए और रानी को उनके ही महल में कैद कर लिया। ये हार उन्हें उनकी सेना में मौजूद कुछ गद्दारों के कारण मिली थी। उनकी वीरता को याद करते हुए हर साल 22-24 अक्टूबर को कित्तूर उत्सव मनाया जाता है।

ये है वीरांगनाओं की कुर्बानी – ऐसी ही कई वीरांगनाएं इस देश में जन्म ले चुकी हैं जिनका नाम आज भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है।