महिलाओं का दायरा – अपने आशियाने को संवारने, सजाने , उसमें बसे हर रिश्ते को संजोने और हर शख्स की ज़रूरतों का ख्याल महिलाएं बखूबी करती हैं।
उनके दिन की शुरूआत भी अपने परिवार से होती है और दिन खत्म भी उन्ही पर होता है। ऐसा नहीं है कि आज के वक्त में महिलाएं सिर्फ घर ही संभाल रही हैं। वो अपने करियर पर भी बखूबी ध्यान दे रही है और प्रोफेशनली भी खुद भी साबित कर रही हैं। वो अगर गृहलक्ष्मी हैं तो किसी कम्पनी की मालिकन भी हैं।
अब महिलाओं का दायरा सिर्फ घर की चारदीवारी नहीं रह गया है बल्कि कईं गुना बढ़ चुका है।
जिसके लिए समाज का एक बड़ा हिस्सा उन्हे बधाई दे रहा है तो वहीं समाज का कुछ हिस्सा आज भी उसी कुंठित मानसिकता का शिकार है जो देवी पूजा तो करते हैं लेकिन अपने घर-परिवार और समाज में मौजूद महिलाओं को सम्मान देने से गुरेज़ करते हैं।
खैर, यहां बात हम कर रहे हैं महिलाओं की, जो बाकी सबका ख्याल रखने में कहीं खुद को ही पीछे छोड़ देती हैं। घर का कौन सा सद्स्य कब क्या खाता है, क्या पहनता है,उसे कब क्या चाहिए होता है, ये तो उन्ही बखूबी पता होता है, लेकिन उनकी ख्वाहिशों और फरमाइशों की फेहरिस्त ज़रा छोटी हो जाती है।
जहां परिवार के पुरूष सदस्य जॉब से आने के बाद खुद को इस कदर थका हुआ घोषित कर देते हैं कि उनसे किसी भी काम की उम्मीद करना बेमानी सा हो जाता है तो वहीं महिलाओं से ये उम्मीद की जाती है कि वो ऑफिस के साथ घर को भी बखूबी मैनेज करें और इस सब के लिए कभी अपने लबों पर शिकायत भी ना लाएं। इस सब का परिणाम ये होता है कि महिलाएं अपने लिए वक्त ही नहीं निकाल पाती।
अगर बात उन महिलाओं की भी करें जो असल में ‘हाउसवाइफ’ नहीं, बल्कि ‘होममेकर’ हैं तो इनकी ज़िदंगी का ताना-बाना भी अपने परिवार के इर्द-गिर्द ही बुना होता है और उसमें ये इस तरह उलझ जाती हैं कि खुद के वजूद का और खुद की ज़रूरतों का अंदाज़ा ही नहीं रहता।
वैसे, इस संदर्भ में सबसे पहली कोशिश तो खुद महिलाओं को ही करनी होगी। बेशक आप सबकी ज़रूरतों का ख्याल रखें लेकिन अपने आप को भी वक्त दें। एक कप चाय के साथ कुछ पल भागते-दौड़ते दिन से चुराएं और उसमें वो करें जो आपको खुशी देता है। उन लोगों से बात कीजिए, जिनसे बात करने के लिए आप कबसे फुर्सत के पल ढूंढ रही हैं।
याद रखें, जितना हक किसी भी और इंसान को खुश रहने और अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने का है उतना या शायद उससे ज्यादा हक़ आपको है।
महिलाओं का दायरा बढ़ चूका है. एक और बात जो यहां कहना मैं ज़रूरी समझती हूं, वो ये कि परिवार के पुरूष सदस्यों को भी इस बारे में कोशिश करनी होगी। अपने आप से नज़रें हटा कर अपने आस-पास देखिए। अपनी मम्मी, बहन, भाभी, पत्नी या फिर और भी किसी रिश्ते में आपसे जुड़ी कोई महिला, कहीं खुद के वजूद को खो तो नहीं रही है। उनकी थकान, उनकी परेशानी को समझे, उनके काम में हाथ बटाए और उन्हे अपने लिए वक्त निकालने के लिए प्रोत्साहित करें।