मंदिर में महिलाओं की एंट्री – मुंबई के हाजी अलि के बाद अब महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में भी प्रवेश की इजाज़त मिल गई है.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगी रोक खत्म कर दी यानी अब वो बेधड़क मंदिर में जा सकती हैं.
दरअसल, केरल के इस 800 साल पुराने मंदिर में एक मान्यता के चलते पिछले काफी समय महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था. इस मामले में फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, “आस्था के नाम पर लिंगभेद नहीं किया जा सकता है. कानून और समाज का काम सभी को बराबरी से देखने का है. महिलाओं के लिए दोहरा मापदंड उनके सम्मान को कम करता है.” चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्तों को अलग-अलग धर्मों में नहीं बांट सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 25 के मुताबिक सभी बराबर हैं. समाज में बदलाव दिखना जरूरी है, व्यक्तित्व गरिमा अलग चीज है. पहले महिलाओं पर पाबंदी उनको कमजोर मानकर लगाई गई थी.
इसलिए लगी थी रोक
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज के दौर में भी लोग पीरियडस को महिलाओं की अशुद्धा से जोड़कर देखते हैं और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की भी यही वजह थी. सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं. मंदिर प्रबंधन का ये बयान बेहद बचकाना और शर्मनाक है.
इस मामले में 7 नवंबर, 2016 को केरल सरकार ने कोर्ट को बताया था कि वह सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है. शुरुआत में राज्य की तत्कालीन एलडीएफ सरकार ने 2007 में प्रगतिशील रूख अपनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की थी जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बदल दिया था. राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए इस मामले में अपना स्टैंड बदलती रही है, लेकिन महिलाओं को मंदिर में प्रवेश न देने का फैसाल जाहिर दौर पर उनके साथ भेदभाव है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने वाकई ऐतिहासिक फैसला सुनाया है और समाज को संदेश दिया कि महिलाएं और पुरुष दोनों बराबर हैं.
मंदिर में महिलाओं की एंट्री – हम आधुनिकता का चाहे जितना भी दम भर लें, मगर बात जब धर्म और मान्यताओँ की आती है तो हमारे देश की सोच आज भी महिला विरोधी ही है.