महिलाएं जो हिरण को पिलाती हैं अपना दूध – मां की ममता का नो कोई मोल है और ना कोई ऑप्शन…
मां, मां होती है जिसकी जगह और कोई रिश्ता नहीं ले सकता। अब चाहे इंसान हो या जानवर, मां का प्यार एक समान होता है और हर मां अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है। लेकिन मां और बच्चे का रिश्ता इंसान और जानवर के बीच में मिक्स हो जाए तो क्या होगा?
इसका जवाब देना तो दूर लोग इस सवाल को ही नकार देंगे। लेकिन इस सवाल को आप तब नकारना बंद कर देंगे और खुद ही जवाब भी देने लगेंगे जब इस जगह की महिलाओं के बारे में जानेंगे।
आज हम बात करने वाले हैं ऐसी महिलाएं जो हिरण को पिलाती हैं अपना दूध ।
महिलाएं जो हिरण को पिलाती हैं अपना दूध –
सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी ये फोटो
ये फोटो बीते साल के नवंबर में सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी। इसे मिशलिन शेफ विकास खन्ना ने इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अपलोड किया था। इस फोटो में एक महिला हिरण के बच्चे को अपने बच्चे की तरह दूध पिला रही थी। ये फोटो बिशनोई समाज की महिला की है। इस फोटो के डिस्क्रिप्सन में लिखते हुए शेफ विकास ने बताया कि इस महिला ने कई हिरण के बच्चों को मरने से बचाया है।
बिशनोई समाज की महिला
ये समाज राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में रहते हैं। इस समाज के ईष्ट देव गुरु जंभेश्वर हैं जो राजस्थान के बीकानेर से थे। ये समाज उनके बताए गए 39 नियमों का ही पूरी निष्ठा से पालन करता है। इन नियमों में से एक नियम है जानवरों से प्रेम, प्रकृति की पूजा करना। एख कहानी ये भी मशहूर है कि बिश्नोई समाज को ये नाम भगवान विष्णु से मिला है।
हिरण के बच्चों को अपना बच्चा मानता है ये समाज
ये समाज हिरण के बच्चों को अपना बच्चा मानता है और उनका पालन-पोषण भी अपने बच्चे की तरह करता है। ये समुदाय राजस्थान के मारवाड़ में हैं। इस समाज के लोगों की संख्या ज्यादा अधिक नहीं है। लेकिन प्रकृति से इस गांव के लोगों को बेहद प्यार है। यहां के पुरुषों को जंगल के आसपास कोई लावारिस हिरण का बच्चा या हिरण दिखता है तो वो उसे घर पर लेकर आते हैं और फिर अपने बच्चों की तरह उस बच्चे की सेवा करते हैं। महिलाएं इन जानवरों की देखभाल करने में इतनी मशगूल हो जाती हैं कि उन्हें अपना दूध तक पिला देती हैं। यहां की महिलाएं इन हिरण के बच्चों के प्रति अपने मां के फर्ज को काफी ईमानदारी से निभाती हैं।
500 साल से जारी है ये परंपरा
माना जाता है कि ये परंपरा पिछले 500 सालों से चले आ रही है। कहानी है कि 500 साल पहले महिलाओं ने हिरण को पालना शुरू किया था। तभी एक हिरण के बच्चे की मां ने एक बच्चे को जन्म देकर दुनिया छोड़ दी थी उसी बच्चे के पालन-पोषण करने और उसे मां का प्यार देने के लिए एक महिला ने उसे अपना दूध पिलाया और अपने बच्चे की तरह रखा। तभी से ये परंपरा चली आ रही है। इस समाज के लोग पर्यावरण के प्रति बहुत ज्यादा सतर्क होते हैं।
पेड़ों के लिए दी थी जान
इस समाज के 300 से ज्यादा लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी। साल 1736 में खेजड़ली गांव व आसपास का इलाके में काफी पेड़ थे। तब इन पेड़ों को वहां के दरबार के लोग काटने आए। इन लोगों का गांव वालों ने विरोध किया। जब दरबार के लोगों ने इनके विरोध को दबाने की कोशिश की तो अमृतादेवी बिश्नोई ने गुरु जम्भेश्वर महाराज की सौगंध दिलाई और पेड़ से चिपक गईं। उन्हें देख अन्य लोगों ने भी ऐसा किया। अब जैसा होता है पहले तो वैसा होता नहीं था। महिलाओं पर हाथ उठाया नहीं जा सकता था। तो ऐसे में महिलाओं के कारण उस समय हजारों पेड़ कटने से बच गए। दरबार और गांव वालों के संघर्ष में उस समय लोग मारे थे।
ये है वो महिलाएं जो हिरण को पिलाती हैं अपना दूध – तो ऐसा है बिश्नोई समाज और उनकी महिलाएं। वैसे महिलाएं किसी भी समाज की हों… उनके संघर्ष की कहानी देखने औऱ सुनने को मिल ही जाती हैं। इसलिए कहा भी जाता है कि जिस घर में महिला होती है वो जरूर प्रगति करता है।