वूमेन स्पेशल स्टेशन – लेडीज़ स्पेशल बस और ऑटो के बाद अब लेडीज़ स्पेशल स्टेशन भी आ गया है। महिलाओं को आगे बढ़ाने और उन्हें हर चीज में आगे बढ़ाने के लिए हर चीज में उनके लिए स्पेशल तौर पर बनाई जा रही है।
अब बस और ऑटो के बाद लेडीज़ के लिए स्टेशन भी स्पेशल बना दिया गया है। हम बात कर रहे हैं देश के पहले वूमेन स्पेशल स्टेशन “माटुंगा” के बारे में जो सेंट्रल रेलवे का पहला ऐसा रेलवे स्टेशन है जो पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित है।
लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स 2018 में दर्ज
इस स्टेशन की हर तरह से देखभाल केवल महिलाएं ही करती हैं। जिसके कारण इसका नाम लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स 2018 में भी दर्ज कर लिया गया है। पिछले साल जून में इस स्टेशन के लिए सेंट्रल रेलवे ने 34 महिलाओं की नियुक्ति की थी। किसी भी स्टेशन के लिए महिलाओं की इतनी बड़ी संख्या में भर्ती होना एक बहुत बड़ी बात है।
महिला सशक्तीकरण का एक बड़ा प्रयास
इस स्टेशन को महिला सशक्तीकरण का एक बहुत बड़ा प्रयास माना जा रहा है। स्टेशन के लिए महिलाओं की जो टीम बनाई गई है उसमें स्टेशन मैनेजर से लेकर खलासी तक महिला है। पॉइंट पर्सन, बुकिंग स्टाफ, टिकट चेकर, आदि सारे काम महिलाएं ही करती हैं। औपचारिक तौर से 12 जुलाई 2017 को इस स्टेशन का कार्यभार इन महिला कर्मियों को सौंप दिया गया था।
41 महिलाएं हैं इस स्टेशन में कार्यरत
फिलहाल इस स्टेशन के देखरेख का कार्यभार 41 महिलाओं की टीम कर रही है। इनका नेतृत्व स्टेशन मैनेजर ममता कुलकर्णी कर रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि ममता जब 1992 में सेंट्रल रेलवे में आई थीं तब वह खुद भी मुंबई डिविजन में स्टेशन मास्टर बनने वाली पहली महिला थीं। यह स्टाफ पिछले 6 महीने से स्टेशन चला रहा है।
ममता कुलकर्णी
भले ही ममता कुलकर्णी का नाम सुनकर बॉलीवुड की याद आती हो… लेकिन अब ये पहचान बदलने वाली है। अब ममता कुलकर्णी का नाम सुनकर माटुंगा को लोग याद करेंगे। इस स्टेशन में अगर सफेद शर्ट-ट्राउज़र, बरगंडी कलर की टाई और माथे पर चमकती बिंदी में कोई महिला नजर आए तो समझ जाना कि वही है, इस स्टेशन की मैनेजर- ममता कुलकर्णी। ममता नारी सशक्तिकरण की एक अनोखी तस्वीर हमारे सामने पेश करती है।
आती हैं रात की ड्यूटी में चुनौतियां
कभी-कभी इस टीम की महिलाओं को रात को ड्यूटी करने के वक्त मुश्किलें आती हैं। लेकिन इन्होंने उसका भी तोड़ निकला लिया है। अब तो ये टीम पुरुष यात्रियों से भी निपटने में स्टाफ पारंगत हो चुकी है। रात की ड्यूटी के समय असामाजिक तत्व, नशेबाज लोग कई बार स्टेशन के आसपास घूमते हैं। लेकिन ये महिलाएं प्रशासन की मदद से इन मुश्किलों से भी पार पा ले रही हैं। वैसे भी रात की ड्यूटी में तो समस्या पुरुषों को भी होती है केवल उसे सॉल्व करने की जरूरत होती है। इसलिए महिलाएं भी इसी सोच से आगे बढ़ रही हैं। इस टीम में 23 से 53 आयु वर्ष के बीच की कुल 41 महिलाएं हैं।
तो ये है वूमेन स्पेशल स्टेशन जहां का कार्यभार पूरी तरह से महिलाओं ने संभाला है। इसलिए आगे से मत कहिएगा कि महिलाएं कुछ नहीं कर सकती। महिलाओं की ऐसी टीम खड़ी करने के पीछे इरादा केवल यही है कि ऐसा माहौल बनाया जाए जहां महिलाएं अपने निजी और प्रफेशनल भले के लिए और संगठन के बारे में भी फैसले खुद करें। सही सोच।
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