चमगादड़ों के साथ रहना – पूरे देश में इस वक्त निपाह वायरस का आतंक फैला हुआ है।
केरल में इस वायरस से कईं लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है। इसकी वजह चमगादड़ों को माना जा रहा है लिहाजा इस समय चमगादड़ों के नाम से भी लोगों को डर लग रहा है लेकिन एक ऐसी भी महिला हैं जो चमगादड़ों को अपने परिवार का सदस्य मानती है और एक दो नहीं बल्कि पूरे 2000 चमगादड़ों के साथ रहती हैं।
हो सकता है आपको ये बात पढ़ने में अजीब लग रही हो या फिर आपके लिए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल हो, लेकिन ये बात एकदम सच है। गुजरात के एक गांव में रहने वाली 74 वर्ष की बुज़ुर्ग महिला 2,000 चमगादड़ों के साथ बिना किसी डर के रह रह रही हैं। ये सारे चमगादड़ कईं सालों से इनके साथी हैं और इनका कहना है कि यही इनका परिवार हैं।
जानकारी के अनुसार, इस उम्ररसीदा महिला का नाम शांताबेन प्रजापति है। ये राजपुर नामक गांव में रहती हैं और अपने चमगादड़ प्रेम की वजह से आस-पास के गांवों में भी चर्चा का विषय हैं। आस-पास के लोग इन्हे चमचिड़ियावाला यानी की चमगादड़ों के साथ रहने वाली बा के नाम से जानते और बुलाते हैं।
अपने पति की मौत, बेटियों की शादी और बेटे के मुंबई में सेटल हो जाने के बाद से शांताबेन पूरी तरह से अकेली हो गईं थी और तब से ये चमगादड़ ही उनके साथी हैं। वो बताती हैं कि जब से उन्होने आंगन में खाना बनाना और सोना शुरू किया तब से धीरे-धीरे चमगादड़ों की संख्या बढ़ती गई। आज आलम ये है कि इनके कमरे की चारों दीवारों और घर की ऊपरी मंजिल पर चमगादड़ों का डेरा है पर शांताबेन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं है।
उन्हे निपाह वायरस के बारे में भी जानकारी है और ये भी पता है कि ये खतरनाक वायरस चमगादड़ों से फैल रहा है लेकिन उनके दिल में इस बात को लेकर कोई डर नहीं है बल्कि उन्हे इस बात का पूरा भरोसा है कि ये चमगादड़ उन्हे किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
अपने पति के मौत के बाद शांताबेन ने बड़ी मेहनत और जतन के साथ अपनी बेटियों की शादी की और बेटे को इस काबिल बनाया कि वो आज मुंबई में काम कर रहा है लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर वो पूरी तरह से अकेली है और उनके इस अकेलेपन को ये चमगादड़ बांट रहे हैं। चमगादड़ों की लीद से जो बदबू आती है उसे दूर करने के लिए शांताबेन घर में नीम और कपूर जलाती हैं। शांताबेन इन चमगादड़ों को हटाने के पूरी तरह से खिलाफ हैं। उनका कहना है कि ये आए भी खुद थे और जब इन्हे जाना होगा तो चले भी खुद जाएंगे। वो इनके भविष्य का फैसला नहीं कर सकती।
जहां, एक तरफ ये कहानी काफी विचित्र है, तो वही दूसरी तरफ ये शांताबेन के अकेलेपन की भी गवाही देती है। उम्र के इस पड़ाव पर जब इंसान अपने परिवार के साथ रहना चाहता है, वो इन चमगादड़ों को अपना परिवार मान रही हैं, ये बात ही अपने आप में काफी कुछ कहती है।
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