- तारों में हमें कोई अपना नज़र क्यों नहीं आता
हमेशा बचपन से हमें बताया जाता है कि हमारे मरने वाले एक तारा बन जाते हैं. हम बेशक कितने ही बड़े हो जाए, पर अपने किसी को खोने के बाद रात को तारों की दुनिया में हम उस एक चेहरे को खोजते रहते हैं. जाने वाले के गम को तो कोई भर नहीं सकता है पर उसका चेहरा देखने के लिए हम बेचैन रहते हैं. तभी तो हम सब कहते हैं कि काश तारों में सही पर, हमें अपना वो नज़र तो आ जाता.