विज्ञान और टेक्नोलॉजी

क्या कंप्यूटर पीछे छोड़ देगा मानव के दिमाग को?

कभी-कभार हमारा सामना लम्बे समय तक चलने वाले गंभीर विवादों से होता है. कुछ प्रमुख इंजीनियरों और प्रभावशाली विचारकों का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भविष्य ऐसा ही एक मामला है. क्या मशीनें मानवों के समान सोचना सीख जाएंगी और फिर हमें पीछे छोड़ देंगी? और अगर वे ऐसा करेंगी तो हमारा क्या होगा? किसी समय विज्ञान कथाओं का ये विषय उच्च टेक्नोलॉजी को परिभाषित करने वाला तथ्य बन गया है. प्रमुख आईटी कम्पनियां इस क्षेत्र में अरबों रूपए लगा चुकीं हैं.

वहीं, इसके साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तेज़ हलचल के बीच इसके परिणामों से चिंतित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. सुविख्यात एस्ट्रो फिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग चेतावनी देते हैं कि एआई का पूर्ण विकास मानव जाति का अस्तित्व ख़त्म कर सकता है. टाइम ने एआइ और मानव मस्तिष्क पर कंप्यूटर जीनियस डेविड जेलेरेंटर से बातचीत की. उन्होंने बाताया कि एआई का पूरा क्षेत्र खतरनाक रूप से पटरी से अलग है. इंटेलिजेंस की खोज में एक प्रमुख प्रश्न का कभी जवाब नहीं दिया गया है. वो है कि मानव शरीर के बिना मानव मस्तिष्क का क्या अर्थ है?

एआई के इतिहास में मस्तिष्क-शरीर के प्रश्न की अनोखी जगह है. कंप्यूटर विशेषज्ञ एलन टयूरिंग ने इसे इतना कठिन पाया कि किनारे कर दिया. इंजीनियर आधुनिक रोबोट बना सकते हैं पर वे मानव शरीर का निर्माण नहीं कर सकते हैं. शरीर चेतना का हिस्सा है इसलिए शारीरिक परिवर्तनों के साथ दिमाग भी बदलता जाता है. बच्चों, किशोरों और बुजुर्गों का मस्तिष्क एक समान नहीं होता है. भावनाओं में दर्द और प्रसन्नता के लम्हें शामिल रहते हैं. वे मस्तिष्क का निर्माण करते हैं. दिमाग हर दिन अलग तरह से कार्य करता है. शरीर के अति सतर्क होने और नींद की स्थिति में उसका व्यवहार अलग रहता है. मानव मस्तिष्क के निर्माण और उसकी हलचल में सभी तरह की शारीरिक स्थितियों की भूमिका है. इस सबको समझे बिना नकली दिमाग बनाना संभव नहीं है.

वहीं, कंप्यूटर को मौत का भय नहीं रहता. इसलिए गूगल के रे कुर्जवील और उनके प्रशंसकों को सिंगुलेरिटी इसलिए पसंद आ रही. अगर मानव को मशीन के साथ मिलाकर सॉफ्टवेयर बनाया जाएगा तो वो फिर मृत्यु से परे हो जाएगा यानी अमर हो जाएगा.

एआइ पर असंतोष व्यक्त करने वाले लोगों की कमी नहीं. सिलिकॉन वैली के आन्त्रप्रेन्योर रोमन ओरमंदी ने दिमाग को प्रोसेसर का मॉडल बताने की आलोचना की है. उनक्जा कहना है कि जैसे-जैसे रिसर्च आगे बढ़ेगी स्पष्ट होगा कि दिमाग बहुत अधिक पेचीदा है.

आने वाले दिनों में कंप्यूटर और अधिक शक्तिशाली होंगे. आज की तुलना में उन पर निर्भरता बढ़ेगी. इससे मशीनें उन स्थानों में प्रवेश करेंगी जो पहले मानव बुद्धि के लिए आरक्षित था. तब कंप्यूटर की याददाश्त हमसे बड़ी होगी. उस तक तेज़ी से पहुंचा जा सकेगा. वे बिना थके अधिक कार्य करेंगे तो उनका महत्व बढ़ेगा. वे कार्य संस्कृति और सीखने के तरीकों में बदलाव करेंगे. कहीं-न-कहीं ऐसे में वे हमारे संबंधों पर भी असर डालेंगे. इसलिए हमें समझना होगा कि कंप्यूटर में क्या कमी है और वे क्या नहीं कर सकते हैं?

Devansh Tripathi

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