मानसरोवर, हज़ारों श्रद्धालुओं की श्रद्धा का स्रोत है, करोड़ों विश्वासियों की आध्यात्मिकता का प्रतीक है.
लोगों का यकीन, कि यहाँ आकर उनके सारे पाप धुल जाएंगे, हमेशा न जाने क्यों एक सच में परिवर्तित होते हुए नज़र आता है.
हर साल की तरह, इस साल फिर से मानसरोवर-कैलाश यात्रा होगी.
ऐसा सुनने में आया है कि 8 जून से लेकर 9 सितम्बर तक यह यात्रा जारी रहेगी. इस साल सभी यात्री 23 बैचों में विभाजित किये जाएंगे.
पहली 18 बैचें उत्तराखंड से गुज़रेंगी और बची 5 बैचें सिक्किम से होते हुए गुज़रेंगी.
नेपाल ने चीन से इस बार मदद की गुहार लगाईं है, और वह भी मानसरोवर-कैलाश यात्रा के मुताल्लिक.
नेपाल ने चीन से उसके बॉर्डर पॉइंट्स को क्लियर करने का अनुरोध किया है ताकि दुनिया भर से आनेवाले 40,000 यात्री और ख़ास कर नेपाल में आई आपदा के बाद वहाँ के श्रद्धालू इस यात्रा में शरीक हो सकें. नेपाल का चीन से उसके बॉर्डर पॉइंट्स को क्लियर करने का अनुराध यह भी दर्शाता है कि नेपाल चाहता है कि वहाँ का पर्यटन एक बार फिर से फले-फूले.
नेपाल के पर्यटन मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “चीन के द्वारा बॉर्डर पॉइंट्स बंद करने की कोई खबर आई नहीं है लेकिन हम चाहते हैं कि हमारे देश का विदेश मंत्रालय हमारी बात को समझे और चीन से इस मुद्दे पर बात-चीत करे”
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने चीन से अनुरोध किया है कि वह हिलसा और हुम्ला जिले के बॉर्डर पॉइंट क्लियर कर दे.
हम तो यही मनाएंगे कि चीन, नेपाल की इस मदद की गुहार को सुन ले और नेपाल की मदद कर दे.
आखिर यह श्रद्धा और भक्ति का सवाल है.