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क्या कभी बाल मजदूरी खत्म हो पायेगी?

12 जून बाल मजदूरी के विरोध का दिन है. कुछ ही वक़्त में ये दिन आएगा, हम बड़ी-बड़ी बातें करेंगे और अपने घरों को चलें जायंगे. अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन आईएलओ 2002 से हर साल इसे मना रहा है. पर बचपन से खिलवाड़ करने वालों के दिलों में, ये दिन किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं ला पा रहा है. 1992 में भारत ने कहा था कि भारत की आर्थिक व्यवस्था को देखते हुए, हम बाल मजदूरी हटाने का काम रुक रुक कर करेंगे. लेकिन आज 2015 आ गया है, लेकिन आज भी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार देश में 68 लाख लड़के और 58 लाख लड़कियां बाल मजदूरी की जाल में फंसी हुई हैं. हाल ही में भारत देश के कैलाश सत्यार्थी जी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. कैलाश जी कई सालों से बाल मजदूरी पर काम कर रहे हैं. देश ने इस खबर पर ऐसे दिवाली मनाई थी कि जैसे देश से बाल मजदूरी ही खत्म हो गयी हो.

यदि कुछ गैर सरकारी संगठनों की मानें तो दुनियाभर में करीब 215 मिलियन बच्चे विभिन्न प्रकार की बाल मजदूरी कर रहे हैं. इसमें दक्षिण एशिया में बाल मजदूरों की संख्या लगभग 37 प्रतिशत और पश्चिमी अफ्रिका में 40 प्रतिशत है.

यूं तो भारत में संविधान व कोर्ट ने बाल मजदूरी के खिलाफ विचार प्रस्तुत किये हैं. सन् 2006 बाल मजदूर कानून के तहत बच्चों के कार्य करने पर प्रतिबंधा भी लग चुका है लेकिन कानून का असर गायब है. 1991 की जनगणना के हिसाब से बाल मजदूरों का आंकड़ा 11.3 मिलियन था. 2001 में यह आंकड़ा बढ़कर 12.7 मिलियन पहुंच गया. भारत में घरेलू नौकरों, चाय की दुकानों, रेस्तरां, होटलों तथा मनोरंजन केन्द्रों पर कार्य कर रहे हैं. जहां बाल मजदूरी के खिलाफ कानून बना, उसी दिल्ली में लगभग 1 लाख से ज्यादा बच्चे, आज भी स्कूलों की बजाए घरों या होटलों पर अपना बचपन बेचते हुए देखे जाते हैं. यहां बेचते हुए इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि 95 प्रतिशत घरेलू कामगार लड़कियां यौन दुर्व्‍यवहार से पीड़ित हैं.

आज दुनियाभर में इस समस्या के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई जा रही है परन्तु सन् 1973 तक इस ओर विश्व के किसी भी देश का ध्यान नहीं गया था. उस समय तक यह एक मामूली सी बात थी परन्तु पहली बार सन् 1973 में विश्व समुदाय ने रोजगार की न्यूनतम आयु सीमा पर एक सन्धि की. इसके अन्तर्गत यह तय किया गया कि 15 वर्ष की आयु के बच्चों को कार्य पर नहीं लगाया जा सकता है.

सन् 1998 तक विश्व के 40 देश ही बाल श्रम को रोकने के लिए तत्पर दिखे. विश्व के कुछ बाल संगठनों के लिए यह आंकड़ा निराशाजनक था. अत: सन् 1999 में विश्व के लगभग 2000 संगठनों ने मिलकर एक मार्च ग्लोबल बाल श्रम के खिलाफ निकाला. इस पूरे आंदोलन में लगभग 85 लाख लोगों ने हिस्सा लिया. यह मार्च 103 देशों में गया तथा सम्पूर्ण विश्व का ध्यान इसने अपनी ओर आकर्षित किया. इस पूरे मार्च की एक खास बात यह थी कि इस आंदोलन की अगुवाई उन बच्चों ने की जो स्वयं बाल श्रम के शिकार थे. 80 हजार किलोमीटर का सफर तय करने के बाद अन्त में जब यह दल जिनेवा पहुंचा, तो इस हूजुम के आगे संयुक्त राष्ट्र संघ को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को झुकना पड़ा. इसके परिणाम स्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कानून पारित किया जिसमें बाल श्रम पर रोक व ‘सबके लिए शिक्षा’ के अधिकार की घोषणा की गई. आज विश्व के लगभग 170 देश इस कानून पर हस्ताक्षर कर चुके हैं तथा बाल श्रम के खात्मे के लिए प्रयत्नशील हैं. आज विश्व समुदाय का बाल मजदूरी की ओर ध्यान इसलिए जा रहा है क्योंकि ये बाल मजदूर वयस्कों से उनका रोजगार छीनकर उन्हें बेरोजगार बना रहे हैं. अकेले दक्षिण एशिया के कुछ देशों में 8 करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर श्रम कर रहे हैं और लगभग 8 करोड़ ही वयस्क इन देशों में बेरोजगार भी हैं. भारत सरकार ने भी इस दिशा में कार्य करते हुए सन् 1979 में बाल श्रम कानून बनाया, जो सन् 2006 में संशोधित होकर ‘चाइल्ड लेबर एक्ट’ बन चुका है. इसके अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम नहीं लिया जा सकता है. लेकिन केवल कानून बना देने से काम नहीं बन जाता. बाल मजदूरी को अगर वाकई में देश से मिटाना है तो कुछ ठोस कदम उठाने होंगे. जैसे रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न कराना ताकि मां-बाप अपनी बेकारी से मजबूर होकर बच्चों को मजदूरी करने के लिए नहीं भेजें. शिक्षा के प्रति जागरुकता बढ़ाना ताकि मां-बाप बच्चों से उपज रहे तात्कालिक लाभ को छोड़ उनके भविष्य के प्रति चिंतित हों. पुलिस और बच्चों से मजदूरी कराने वाले माफियाओं का संबंधा खत्म करने के लिए उपाय करना. बाल मजदूरी से मुक्त कराये गये बाल श्रमिकों को बाल सुधार केन्द्र भेजना इत्यादि ताकि वे दुबारा अपनी पुरानी राह पर न आ जायें.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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