“ग्रेट आर्किटिक ऑफिस कांस्पिरिस”
जैसी किसी चीज़ का नाम सुना हैं आपने कभी?
शायद ही सुना होगा. अच्छा आप सभी ने अपने ऑफिस में एक बात जो ज़रूर नोटिस की होगी कि, लगभग सभी फीमेल एम्प्लोई ऑफिस के AC से ज्यादा ठण्ड लगने की शिकायत हमेशा करती हैं, भले ही वह मौसम गर्मी का क्यों न हो.
जबकि इसके उल्टे मेल एम्प्लोई AC में बड़े आराम से रहते हैं.
“नेचर क्लाइमेट चेंज” नाम के एक जर्नल में दो वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्यन प्रकाशित हुआ हैं, जिसमे यह बात कही गयी हैं कि ऑफिस में महिला कर्मचारियों को पुरुष कर्मचारी के मुकाबले आधिक ठण्ड लगने के पीछे एक अजीब सी वजह हैं. इस वक़्त के ज्यादातर ऑफिसों की इमारत में 50 साल पुराने तरीके से AC के तापमान तय किये गए हैं, जो अभी तक वैसे ही चल रहे हैं. इस तरीके में मर्दों के मेटाबोलिक रेट का इस्तेमाल किया जाता था. जिससे ऑफिस का तापमान तो मर्दों के लिए उपयुक्त होता हैं लेकिन औरतों के लिए यही तापमान ज्यादा ठंडा हो जाता हैं.
इस अध्यन में आगे कहा गया हैं कि ज्यादातर ऑफिसों का थर्मोस्टेटस 1960 के दशक के माडल के हिसाब से बनाये गए थे. जिसमे हवा का तापमान, हवा की गति, वाष्प दबाव, क्लोदिंग इन्सुलेशन आदि चीजों को ध्यान में रखकर ऑफिस बनाया जाता था.
नीदरलैंड यूनिवर्सिटी के अध्यनकर्ता ने कहा कि इस तरह के अधिकतर ऑफिसों में उर्जा की खपत आप ज्यादा ही पायेंगे, क्योकि ये सारे ऑफिस पुराने माडल और पुरुषों के शारिरिक तापमान को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं. उन्होंने आगे कहा कि अगर हमें अपने ऑफिस में काम करने वाले सभी लोगों का सही तापमान पता हो तो हम भी ऑफिस का तापमान, ऑफिस की बनावट के हिसाब से तय कर सकते हैं. जिससे उर्जा की खपत कम होगी और हम कार्बनडाईऑक्साईड का उत्सर्जन भी कम कर पाएंगे.
इस अध्यन में एक यह भी अपील की गयी कि ऑफिस में तापमान तय करने में लैंगिक भेदभाव नहीं रखना चाहिए.
पुराने समय में कामकाजी औरतों की संख्या पुरुषों के मुक़ाबले बहुत कम थी तो यह तापमान उस वक़्त के लिए सही हो सकता हैं, लेकिन अभी काम करने वाली महिलों की संख्या काफी बढ़ चुकी हैं तो इस बात को ध्यान में रखना चाहिए.
इन बातो के अलावा हम इन तरीकों का इस्तेमाल कर के ऑफिस के AC के तापमान में थोड़ी वृद्धि कर के ग्लोबलवार्मिंग जैसी समस्यों से निपटने में भी सहायता मिल सकती हैं.
अब अगर यह अध्यन इन दोनों रूप में इतना लाभदायक हैं कि ऑफिस में काम करने वाली महिलाओं के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्यों से राहत दिला सकता हैं तो इसे व्यवहारिक रूप देने में हम सब को सोचना चाहियें.
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