चाहे वह गंगा नदी के दियों से चमकते घाट हों या सह्याद्री के धुप से झुलसे हुए पहाड़.
भारत में हर एक चीज़ की एक अपनी पहचान होती है. अमृतसर शहर में शान से खड़ा, जगमगाता स्वर्ण मंदिर, उत्तराखंड के पहाड़ों की ऊंचाइयों में खोए हुए चार धाम, दिल्ली की तंग गलियों से आज़ाद जामा मस्जिद की सुरीली अज़ान या गोवा की हवाओं में तैरती खुशबू सा से कैथेड्रल.
हिंदुस्तान, एक राष्ट्र होते हुए भी यहाँ सभी धर्मों की पहचान बिलकुल अलग है! इस देश को यही चीज़ इतनी खूबसूरत बनाती है. विविधता में एकता!
भारत के बारे में ऐसी बातें तो हर कोई करता है! मैंने ज़रूरी समझा इस लिए मैंने भी कह दी. लेकिन आज का मुद्दा कुछ अलग है. एक ऐसा मुद्दा, एक ऐसा सवाल जो हर भारतीय सुलझाने की सोचता है लेकिन कामियाब नहीं होता, और अगर कामियाब होता भी है तो नाज़रंदाज़ी के धुंए में वह कामियाबी कहीं खो जाती है.
सवाल है कि, “आज तक भारत का प्रधान मंत्री कोई मुस्लिम क्यों नहीं बन पाया है?”
देखिए, आप लोग सोच रहे होगे कि हम ऐसे बेफिज़ूल के मुद्दे क्यों उठाते हैं, लेकिन ये वे मुद्दे हैं जो कोई नहीं उठाता! ज़रा आप ही सोचिए, आज़ादी के 67 साल भी, इस सेक्युलर भारत में एक भी मुस्लिम, प्रधान मंत्री नियुक्त नहीं किया गया.
आपको क्या लगता है? इसका कारण क्या हो सकता है?
शायद मेरे पास दो कारण हैं.
पहला कारण यह हो सकता है कि आज की तारीख में उतने प्रभावशाली मुस्लिम नेता या लीडर नहीं बचे हैं और जो बचे हैं वे बिलकुल अतिवादी ख्यालों के हैं.
दूसरा कारण यह है कि भारत देश की जनता, जहां 85% लोग हिंदू हैं, क्या एक मुस्लिम प्रधान मंत्री को चुनेगी? क्योंकि आप सभी हिंदू-मुस्लिम रिश्तों के इतिहास को जानते हो.
चलिए अगर एक मुस्लिम, प्रधान मंत्री बन भी गया तो क्या वह भारत जैसे देश को सम्हाल पाएगा? जहां हर पल कुछ न कुछ होता ही रहता है.
ऐसी बात नहीं है कि प्रभावशाली सशक्त मुस्लिम नेताओं की भारत में कमी थी. ऐसे कई नेता थे जो मुस्लिम थे लेकिन साथ-साथ प्रभावशाली भी थे. जैसे कि मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद.
मैं पूछना चाहूँगा आज के युवाओं से, कॉलेज-स्कूल जानेवाले छात्रों से!
आपको क्या लगता है?
क्या भारत अगले 10 या 15 सालों में एक मुस्लिम प्रधान मंत्री के लिए तैयार हो जाएगा या फिर कोई आपसी झगडे इस राजनैतिक सफ़र का रुख मोड़ देंगे?
अगर आपको यह मुद्दा वाकई में सोचने लायक लगा तो कृपया नीचे कमेंट करके हमें जवाब दें.