“जल्दी का काम शैतान का” मुहावरा मैगी के लिए तो बिलकुल सही साबित हुआ..
दो मिनट वाली मैगी शैतानी निकलेगी ये मैगी प्रेमियों ने तो कभी नहीं सोचा था.
पर सालों से चली आ रही मैगी का सच सामने आ गया. बुजुर्गो का कहा सही हो गया, जल्दी में किया काम ख़राब ही होता है.
ये तो हुई इंस्टेंट फ़ूड की बात.
सोचने वाली बात ये है कि जब इंस्टेंट फ़ूड नही चला, तो हम सरकार से क्यों उम्मीद करते हैं की वो इंस्टेंट हो जाये?
आजकल बहुत प्रचलन में है उनचास दिन की सरकार, सौ दिन की सरकार, 1 साल की सरकार… पर सरकार चुनी तो गयी है पांच सालों के लिए. तो फिर तुरंत ही अच्छे दिन की उम्मीद क्यों? अगर सरकार से भी तुरंत ही रिजल्ट चाहिए, तो पहले ये जरूर सोच लेना चाहिए की कहीं इंस्टेंट रिजल्ट का हाल भी इंस्टेंट फ़ूड की तरह न हो जाये?
ये सही है की चुनी सरकार ने क्या काम किया क्या नहीं इसका पता जनता को होना ही चाहिए. सरकार के कार्यों पर नज़र रखने के लिए Ombudsmen की जरूरत है. पर 5 साल की उम्मीदों को 1 ही साल में पूरा किये जाने की उम्मीद भी गलत है. और ये बात सिर्फ केंद्र सरकार के लिए नहीं राज्य सरकारों के लिए भी लागू होती है. सरकार के काम का क्रिटिकल एनालिसिस जरूरी है. पर हर वक़्त माइक लेकर उनके पीछे भागना भी गलत है.
दिल्ली के साथ ऐसा ही हुआ. पहली बार में यही “आप” की सरकार ने 49 दिन में फटाफट फैसले लेकर, सत्ता छोड़ दी और जनता एक साल तक अधर में लटकी रही.
ये नतीजा इंस्टेंट फैसलों और उम्मीदों के चक्कर में हुआ. जब बहुमत देकर सरकार चुनी गयी हैं तो उन्हें 5 साल का वक़्त देना चाहिए ताकि वो रिजल्ट दे सके. और अगर तब भी सरकार का परफोर्मेंस ख़राब है तो हमारे पास वोट का अधिकार भी है.
हमें सरकार Instant Sarkaar नहीं “टिकाऊ” सरकार चाहिए. जिसके लिए सरकार को दिनों के हिसाब से जज करना बंद करना होगा.
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