उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री को लेकर जैसे ही इंतजार खत्म हुआ और नाम की घोषणा हुई तो योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाने जाने के साथ दो उपमुख्यमंत्री बनाने की खबर से हर कोई हैरान रह गया.
आखिर ऐसी क्या वजह थी कि जो भाजपा को एक नहीं बल्कि यूपी के दो उपमुख्यमंत्री बनाने पड़े.
दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाने को लेकर भाजपा जो तर्क दे रही है कि बड़ा प्रदेश होने के कारण काम के बोझ को देखते हुए स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी मांग की थी, क्या वाकई में सच है.
दरअसल, भाजपा जो तर्क दे रही है उसमें कई झोल है.
आपको बता दें कि यूपी के दो उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य दोनों का ही नाम सीएम के लिए भी दौड़ में था लेकिन यदि भाजपा दिनेश शर्मा को मुख्यमंत्री बनाती तो उसको भाजपा और संघ का ब्राह्मणवाद कहकर विपक्ष उस पर दलित और अन्य जाति विरोधी होने का आरोप लगाती.
वहीं केशव प्रसाद मौर्य को यदि सीएम बनाया जाता तो अपर कास्ट की नाराजगी का डर था. क्योंकि मौर्य का अनुभव और कद इतना बड़ा नहीं है जो इस खाई को पाट सके.
लेकिन इस बीच कुछ घटनाक्रम ऐसे हुए जो कई संकेत देते हैं.
जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा मनोज सिंहा के नाम आगे बढ़ाए जाने की बात मीडिया में आना. लेकिन उनके नाम पर जनता से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई.
जहां एक मनोज सिन्हा का नाम मीडिया में तेजी से चल रहा था तो दूसरी ओर भाजपा पर्यवेक्षक जो कि प्रदेश में मुख्यमंत्री को लेकर पार्टी के लोगों की राय जान रहे थे उनके सामने कुछ चुनौतियां आनी शुरू हो गई थी.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के समर्थक उनकों प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर जगह जगह नारेबाजी कर एक प्रकार से दवाब बना रहे थे.
इन सब के बीच जब ये खबर योगी खेमे को लगी तो वह भी मैदान में आ गया. क्योंकि जिस दमदार तरीके से भाजपा में योगी आदित्यनाथ दस्तक दे रहे थे उसको इग्नोर करना भाजपा के लिए मुमकिन नहीं था.
लिहाजा अंत में जब योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लग गई तो इसके बाद भाजपा के सामने आई असली चुनौती से निपटने की. वह थी जातियों का समीकरण साधने की.
क्योंकि ठाकुर जाति से आने वाले योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा को ब्राहम्णों के नाराज होने और उसके बसपा की ओर मुड़ने की आशंका थी. क्योंकि मायावती सहित पूरा विपक्ष इसे इसी रूप में प्रचारित करता.
वहीं दूसरी ओर इन चुनावों में भाजपा की जीत में ओबीसी जातियों ने बड़ी भूमिका निभाई थी. साथ ही ओबीसी जाति से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य का नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हो जाने के बाद वहां भी कहीं गलत संदेश न चला जाए इसको लेकर भी भाजपा सतर्क थी.
लिहाजा इससे एक ओर जहां जातियों को साधने की कोशिश की गई है, तो वहीं सत्ता का एकीकरण ना हो ये भी ध्यान रखा गया है. क्योंकि योगी आदित्यनाथ जैसी की उनकी दंबग छवि है उसके चलते पूरी पार्टी पर हावी न होने पाए इसको लेकर भी पार्टी ने उन पर अरोपक्ष नियंत्रण रखने के लिए यूपी के दो उपमुख्यमंत्री बनाए है.
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