आज की पीढ़ी स्कूल बैग के बोझ से दबी जा रही है और सबसे हैरानी की बात ये है कि जो कुछ भी इन्हें पढ़ाया जा रहा है, उसमें से अधिकतर चीज़ें उनके भविष्य में बिलकुल काम नहीं आएँगी!
लेकिन जिस मुद्दे से शिक्षा प्रणाली बच के निकल रही है, वही हमारे देश के लिए सबसे ज़रूरी मुद्दा है, एक बेहतर आज और कल के लिए!
मैं बात कर रहा हूँ धर्म-निरपेक्षता की!
जी हाँ, सब पढ़ लिया लेकिन अगर धर्म-निरपेक्षता के बारे में सच्चाई नहीं जानी तो हमारे इस देश में, जहाँ अनेकों धर्म-समुदायों के लोग एक साथ रहने की कोशिश कर रहे हैं, शांति और उन्नति कभी नहीं होगी!
हमारे संविधान में सैक्युलरिज़म यानि धर्म-निरपेक्षता को बहुत महत्व दिया गया है लेकिन देश की राजनैतिक पार्टियों ने गुज़रते वक़्त के साथ इसकी परिभाषा अपनी सहूलियत अनुसार बदल डाली है! अब “सेक्युलर” शब्द केवल वोट बटोरने या लोगों में विवाद खड़े करने के ही काम आता है!
संविधान के अनुसार और पूरी दुनिया में भी इसकी एक ही परिभाषा समझी गयी है: हर किसी को अपनी मर्ज़ी के धर्म को पसंद करने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की आज़ादी है!
कितनी आसान सी बात है ना? लेकिन राजनीती में पड़कर इसका इस्तेमाल इतने घिनौने रूप में हुआ है कि अब “सेक्युलर” होने का मतलब है मेजोरिटी के ख़िलाफ़ होना और माइनॉरिटी को गले लगाना!
सादे शब्दों में सेक्युलर होना किसी एक धर्म की तरफ़ झुकना नहीं है!
बस अपनी ज़िन्दगी जीनी है, अपनी मर्ज़ी के धर्मानुसार बिना किसी और पर अपने विचार थोपे हुए या किसी और के धर्म को छोटा बनाते या बताते हुए!
आज जब सारी दुनिया में धर्म को लेकर इतने विवाद खड़े हो चुके हैं, ज़रूरी है कि हम अपनी आने वाली नस्लों को ये बताएँ कि हमारे देश में कई सदियों से हर धर्म का सत्कार हुआ है, और हमने सभी धर्मों को हमारी जीवन-प्रणाली में शामिल किया है! मिल-जुल कर रहना, एक दूसरे की इज़्ज़त करना और प्यार बाँटना ही हमारे पूर्वजों का ध्येय रहा है! धर्म के नाम पर बाँटने वाले अँगरेज़ तो चले गए लेकिन उनके पीछे हमारे अपने राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए आज हमें एक बार फिर से बाँटने की कोशिश की है! उनकी ये कोशिश तभी असफ़ल होगी जब हम धर्म-निरपेक्षता के सही मायने बचपन से ही बच्चों को पढ़ाएँगे और समझायेंगे ताक़ि जब वो बड़े हों, समझदार हों तो सही फ़ैसला ले सकें!
आसान शब्दों में कहा जाए तो मानवता के विकास के लिए सबसे अहम मुद्दा है धर्म का| और अगर उसके बारे में बचपन से ही साफ़ शब्दों में पढ़ाया जाए तो बड़े होकर कट्टरवादी होना नामुमकिन सा हो जाएगा और सिर्फ़ अपने ही नहीं, दूसरे धर्मों के प्रति भी सहनशीलता बढ़ जायेगी! वक़्त की यही माँग है!