पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक विवाद छिड़ा हुआ है|
या यूँ कहिये कि विचार-विमर्श से बात शुरू हुई थी और उसने रूप ले लिया एक बहस का!
बात इतनी सी थी कि हिंदुस्तानी मुस्लिम रमज़ान को रमदान क्यों कह रहे हैं? क्यों रमदान हो गया रमज़ान?
असल में रमदान शब्द सऊदी अरेबिया में इस्तेमाल किया जाता है और भारत में हम हमेशा से रमज़ान मुबारक ही कहते-सुनते आये हैं| फिर अचानक यह बदलाव क्यों?
जितने मुँह उतनी बातें!
हर किसी को इसके पीछे छुपे कारण के बारे में पता हो, यह ज़रूरी तो नहीं और इसीलिए हर कोई अपने हिसाब से अटकलें लगा रहा था| किसी ने कहा कि आई इस आई इस के आतंकवादियों के प्रचार की वजह से यह बदलाव आया है तो कोई कहने लगा कि ये अरब देशों की चाल है हिंदुस्तानी मुसलमानों को बरगलाने की!
पर सच इतना ख़ौफ़नाक या गंभीर नहीं जितना की लोगों ने उसे दिखाने की कोशिश की थी| बात बड़ी ही सरल है| मुस्लिम कैलेंडर हमेशा से अरबी भाषा में ही लिखा जाता रहा है और क़ुरान अरबी भाषा में ही लिखी गयी लेकिन हिंदुस्तान में उस भाषा ने अलग रूप अख्तयार कर लिया| हमारे यहाँ उर्दू भाषा बोली जाती है जो की पर्शियन, अरबी और संस्कृत भाषा का मिश्रण है| तो इस नयी भाषा में कुछ लफ्ज़ वैसे ही हैं जो सदियों से चले आ रहे हैं और कुछ शब्दों ने एक नयी पहचान बना ली और रोज़मर्रा के जीवन में इस्तेमाल में आने लगे|
अरबी भाषा में रमदान के महीने को ऐसे लिखते हैं: र–म–दा–न
पर्शियन में “द” को बोला जाता है ‘ज़द“
बस, इसी मिश्रण और भाषा के अलग चोगा पहनने की वजह से हिंदुस्तान में रमदान हो गया रमज़ान!
फर्क कुछ भी नहीं है, न ही कहीं कोई षड़यंत्र रचा जा रहा है!
दोनों शब्दों के मतलब एक से ही हैं; बस अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से उन्हें बोला जाता है|
अगर हिंदुस्तानी मुसलमान रमज़ान की जगह रमदान कहना चाहें तो वो ग़लत नहीं होगा और ना ही यह अरबियों की नक़ल करने जैसे होगा!
उम्मीद है लोग इन मतभेदों को भुला इस पाक त्यौहार को मनाएँ और अमन-शान्ति की दुआ करें!