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…तो इसलिए सीता की अग्निपरीक्षा लेने के लिए विवश हो गए थे भगवान राम !

सीता की अग्निपरीक्षा

सीता की अग्निपरीक्षा – रामायण की कथा के अनुसार भगवान श्री राम को चौदह साल का वनवास मिला था इस वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ थे.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंकापति रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था और करीब दो साल तक माता सीता रावण के कैद में थीं.

रावण की हत्या के बाद श्रीराम ने सीता को मुक्त कराया था, लेकिन उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा और ये परीक्षा खुद भगवान राम ने ली थी.

प्रजा का मान रखने के लिए श्रीराम ने ली सीता की अग्निपरीक्षा

लंबे समय तक रावण की कैद में रहने के बाद माता सीता जब श्रीराम के साथ आयोध्या लौटीं तब उनकी पवित्रता को लेकर समाज के एक वर्ग में संदेह होने लगा था. लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि माता सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती हैं.

इस बात की पुष्टि व आयोध्या की रानी के रुप में स्वीकार करने से पहले सीता को अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए कहा जाता है. जिसके बाद अपनी प्रजा का मान रखने के लिए खुद भगवान राम सीता की अग्निपरीक्षा लेते हैं.

इसके बाद एक धोबी द्वारा फिर ये कहा जाता है कि सीता को आयोध्या की रानी बनाना सही नहीं है क्योंकि वो काफी समय तक रावण की लंका में रहकर आई हैं.

हालांकि श्रीराम सीता जी की फिर से अग्निपरीक्षा नहीं लेना चाहते थे लेकिन एक राजा होने के नाते उन्हें अपनी प्रजा की बात को ध्यान में रखते हुए फिर से अग्निपरीक्षा का फैसला लेना पड़ता है.

ये तो हर कोई जानता है कि भारतीय समाज में सीता को एक पवित्र और आदर्श नारी का दर्जा प्राप्त है. लेकिन समाज में यह धारणा भी प्रचलित है कि समाज द्वारा उठाए जानेवाले सवालों के चलते और अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए भगवान राम ने माता सीता का त्याग कर दिया था.

पद्म पुराण के अनुसार रामायण में थी दो माता सीता

पद्म पुराण की कुछ कहानियों को आपस में जोड़ा जाए तो इससे ये बात सामने आती है कि रामायण में एक नहीं बल्कि दो सीता थी, पहली असली और दूसरी माया.

अगर पद्म पुराण की कहानियों को सच मानें तो माता सीता को कोई अग्नि परीक्षा नहीं देनी पड़ी थी और ना ही उन्हें वनवास जाना पड़ा था. यही नहीं खुद भगवान राम भी माता सीता के इन दोनों रुपों के बारे में जानते थे.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता अग्नि देव की पूजा करती थीं और त्रेतायुग में ये धारणा थी कि अगर कोई व्यक्ति सच्चा है तो उसे अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती.

माता सीता की भक्ति से प्रसन्न होकर अग्नि देव ने अग्निपरीक्षा के दौरान सीता की जगह उनकी माया सीता को रखा जिसे रावण अपने साथ अपहरण करके लंका ले गया था.

ऐसा कहा जाता है कि जब सीता को भगवान राम ने रावण से बचाया था उसके बाद उन्होंने माया सीता से विनती की थी कि वो वापस चली जाएं और असली सीता वापस आ जाएं. इसीलिए सीता की अग्निपरीक्षा के दौरान असली सीता बाहर आयी जिन्हें रावण छू भी नहीं पाया था.

गौरतलब है कि माता सीता के चरित्र पर उंगली उठानेवाली प्रजा को जवाब देने के लिए जब राम ने सीता की अग्निपरीक्षा ली तो इससे ये साबित हो गया था  कि वो पवित्र और वफादार हैं बावजूद इसके श्रीराम ने उनका त्याग कर दिया था, जिसका कारण आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है.