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प्राचीन नग्न स्त्री पूजनीय रही और आज भी हैं! इसके पीछे राज क्या था?

एक समय था जब स्त्री नग्न होकर भी सम्मानीय गुणी और अच्छी कही जाती थी.

उन कम कपडे और नग्न स्त्रियों को ही माँ, बहन, और बेटी कहकर सम्मान दिया जाता था और उनकी प्रशंसा की जाती थी. उस समय स्त्री के नग्न बदन को अनदेखा कर स्त्री के गुणों के बारे में बताया जाता था और स्त्री के कपड़ो के कारण उनका उपहास नहीं किया जाता था.

हम उसी समाज से हैं जहाँ नग्न स्त्री की पूजा होती थी और  वही नग्नआज भी उन्ही स्त्रियों को स्त्री जाति का आदर्श बताया जाता है. उन आदर्श स्त्री की नग्न मूर्ति साक्ष्य है जिनको आज भी सम्मान के साथ पूजा जाता है.

फिर आज समाज में स्त्री को उसके कपड़ो से जोड़ाकर उसका सम्मान क्यों किया जा रहा है?

आज की स्त्री कम कपडे में बहार निकले तो बेशरम कहलाती है ऐसा क्यों ?

आज हम प्राचीन काल से लेकर आज तक के  स्त्री के पहनावे और सम्मान पर चर्चा करेंगे.

हम प्राचीन काल की बात करें तो प्राचीन मूर्ति जिसे देश का धरोहर और राष्ट्र की संपत्ति कहा जाता है. उस सब में जितनी स्त्रियाँ है सब नग्न अवस्था में मिलती है. हज़ारों प्राचीन मंदिर की मूर्ति कला, एजंता एलोरा की गुफाओं में मिलने  वाले कलाशिल्प, और खुजराहो में मिलने वाले कलाशिल्प. इन सब जगह ज्यादातर मूर्ति और चित्र में स्त्रियाँ नग्न अवस्था में ही दिखाए गई है. देवियों की प्राचीन मूर्ति नग्न अवस्था में ही देखने को मिलती है. उन सब को भारतीय संस्कृति और धरोहर का अंग मान कर पूजा की जाती है.

जब हम त्रेतायुग, द्वापरयुग, सतयुग की बात करते हैं तो जितनी स्त्री का नाम आता है सब के साथ सम्मान और आस्था से लेते हैं.

ऐसा क्या था उस समाज में कि उस समाज की सारी स्त्री सम्मानीय और पूजनीय रही, जबकि उनपर बनी जो चित्रकला और मूर्ति देखने को मिलता है उसमे भी स्त्री नग्न और सेक्स करती हुई दिखाई देती है.

इस विषय में मेरा विचार है.

जब पुरुष श्रेष्ठ थे तो समाज श्रेष्ठ था और समाज श्रेष्ठ तो नारी का सम्मान होना ही था…

पहले स्त्री को सम्मान उसके कपड़ो को, बदन को, पहनावे को, चलने के ढंग को, देखकर नहीं दिया जाता था.

स्त्री जैसे भी हो उसको सम्मान दिया ही जाता था.  स्त्री के कपड़ो से ज्यादा स्त्री के गुणों को महत्त्व दिया जाता था. स्त्री के चलने के ढंग से ज्यादा उसके जीवनशैली और हुनर को देखा जाता था, इसलिए उस काल स्त्री पूजनीय रही. उस काल के पुरुष स्त्री को अपमान से बचा कर रखते थे और उनकी कमी को नजर अंदाज कर स्त्री को सम्मान और आदर्श गुणों पर चर्चा करते थे.

सतयुग और त्रेतायुग में एक भी स्त्री को भद्दे शब्द से संबोधित नहीं किया गया था. परन्तु बाद में जो लेखक महानुभाव आये उन्होंने अपने हिसाब से शब्दों को तोडा मरोड़ा तब स्त्री अपमान में अनेको शब्द लिख दिए

द्वापर में रुख्मणि, राधा, सहोदर, द्रोपदी सबने प्रेम विवाह किया फिर भी आज सम्मान से नाम लिया जाता है.

सीता ने स्वयंवर में पति चुना लेकिन फिर भी सम्मानीय रही.

राधा ने कृष्णा के साथ रास लीला रचाई फिर भी मंदिरों में पूजी जा रही है .

सब राजघराने और बड़े परिवार से थी लेकिन सबकी मूर्ति चित्र कही न कही नग्नावस्था में मिलती है और पूजनीय है .

वर्तमान में जो पुरुष वर्ग और समाज है  उसकी चर्चा का विषय सिर्फ स्त्री के कपडे, श्रृंगार, और  चलने के तरीके देखना बस है

पुरुषों का नजरिया  नग्न और गन्दगी भरा है इसलिए स्त्रियों बेशर्म बेहया और अनेकों गंदे शब्द से जानी जा रही है.

आज के पुरुषों  स्त्री के गुण उनके कपड़ों में  और चलने में दिखाई देता है. जबकि पुरुष और स्त्री का संबंध बिना कपड़ों से ही बनता है मगर आज का पुरुष कम कपड़ो की स्त्री के बारे में जो राय देता है वो सुनाने के लायक नहीं होती है.

जब पुरुष निर्लज है, समाज निर्लज है, तो स्त्रियाँ सबको निर्लज तो दिखेंगी ही

सोच बदलो नजरिया अपने आप बदल जाएगा

स्त्री का सम्मान उसके कपड़ो से नहीं हुनर और काबिलियत से करके देखो सारी स्त्री फिर पूजनीय नज़र आएगी.

जिस दिन भारतीय समाज के लोग  स्त्री कपडे पहनावे से बहार निकल कर स्त्री के बारे में उनके गुणों के बारे में सोचने और बोलने लगेगे तो आज भी स्त्री हर रूप में सम्मानीय दिखाई देंगी .

हमें औरतों के प्रति नज़रिए और सोच को बदलने की जरूरत है.

Dr. Sarita Chandra

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Dr. Sarita Chandra

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