आपने ध्यान दिया होगी कि हर मंदिर में जहां शिव जी विराजमान होते हैं, वहां नंदी भी होते हैं और भोलेनाथ के साथ नंदी की पूजा की जाती है.
मगर क्या आप जानते हैं कि नंदी की पूजा क्यों की जाती है. क्यों शिव जी के साथ हर जगह की जाती है उनके वाहन नंदी बैल की पूजा?
चलिए आज हम आपको इससे जुड़ी एक कहानी बताते हैं.
पुराणों के अनुसार, एक समय शिलाद नाम के ऋषि थे, जिन्होंने लम्बे समय तक शिव जी की तपस्या की थी. जिसके बाद उनकी तपस्या से खुश होकर भोलनाथ ने उन्हें नंदी के रूप में पुत्र दिया था.
शिलाद ऋषि एक आश्रम में रहते थे. उनका पुत्र भी उन्हीं के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करता था. एक समय की बात है शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए थे. जिनकी सेवा का जिम्मा शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा. नंदी ने दोनों संतों की खूब सेवा की. संत जब आश्रम से जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को लंबी आयु आर्शिवाद दिया पर नंदी को नहीं दिया. इस बात से शिलाद ऋषि परेशान हो गए. अपनी परेशानी को उन्होंने संतों के आगे रखने की सोची और संतों से इस बात का कारण पूछा. कुछ सोचने के बाद संत बोलें, नंदी अल्पायु है. यह सुनकर मानों शिलाद ऋषि के पैरों तले जमीन खिसक गई. शिलाद ऋषि काफी परेशान रहने लगे.
इस तरह पिता की परेशान देखकर एक दिन नंदी ने उनसे पूछा कि क्या बात है, आप इतना परेशान क्यों हैं पिताजी. शिलाद ऋषि ने कहा संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो. इसीलिए मैं बहुत चिंतित हूं. पिता की बात सुनकर नंदी जोर से हंसने लगा. और बोला कि भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है. ऐसे में मेरी रक्षा करना भी उनकी ही जिम्मेदारी है, इसलिए आप परेशान न हों.
नंदी पिता को शांत करके भुवन नदी के किनारे भगवान शिव की तपस्या करने लगे. दिनरात तपस्या करने के बाद नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए. शिवजी ने नंदी से उसकी इच्छा पूछी, तो नंदी ने कहा कि मैं पूरी उम्र सिर्फ आपके साथ ही रहना चाहता हूं.
नंदी से खुश होकर शिवजी ने उसे गले लगा लिया.
शिवजी ने नंदी को बैल का चेहरा दिया और उसे अपने वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तम रूप में स्वीकार कर लिया. तब से शिव जी मंदिर में नंदी बैल को भी स्थापित किया जाने लगा.
यही वजह है कि शिव जी के साथ हर जगह नंदी की पूजा होती है और नंदी के बिना शिवलिंग अधूरा माना जाता है.