हिन्दु धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक कहा जाने वाला मानसरोवर ऐसी जगह हैं, जिसे भगवान् शिव का निवास कहा जाता हैं और जहाँ बहुत ही रहस्यमय वातावरण रहता हैं.
असल में मानसरोवर टेथिस महासागर का अवशेष है. जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है. इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें महासागर वाले गुण हैं. सबसे बड़ी बात यह है, कि यहां जीवन के एक अलग रूप से जुड़ी तमाम गतिविधियां हैं।
हमारी आध्यात्मिक प्रक्रिया का आधार भी यही है. मनुष्य जीवन या तो चैतन्य है या चैतन्य नहीं है. लेकिन मानसरोवर में जो कुछ भी देखा गया है, वह इन मानदंडों को चुनौती देता है. वहां सब कुछ व्यक्तिगत है, फिर भी आपस में गुथा हुआ है. वहां सब कुछ अचेतन सा लगता है और ऐसा लगता है जैसे सब कुछ अपनी प्रकृति के अनुसार चल रहा है, लेकिन वह बहुत चेतन भी है. बहुत ज्यादा चेतन, ज्यादातर इंसानों से भी ज्यादा. मज़े की बात यह है कि वे खुद बस यूं ही चलने लगते हैं, स्वचालित रहते हैं. उनके बारे में कुछ भी विस्तार से कहना मुश्किल है, इसके लिए हमारे पास शब्द ही नहीं हैं क्योंकि यह जीवन के तमाम मूलभूत मानदंडों को चुनौती देते हैं.
यह जगह कई मामलों में आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रमुख केंद्र है लेकिन रहस्यवाद के विज्ञान की शुरुआत भी यहीं से हुई है. शिव सूत्र में उन्हें यक्ष स्वरूपी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वह पृथ्वी के नहीं हैं. मैंने कभी नहीं माना कि ये सभी बातें सत्य हो सकती हैं, लेकिन मानसरोवर की चीजों के बारे जानने के बाद वे सब बातें इतनी सच लगती हैं, कि अंदर से कंपकपी हो रही है.
भारत एक ऐसा देश है, जहां हमेशा से भगवान शिव को सबसे महत्वपूर्ण भगवान माना जाता है. भगवान शिव के बारे में यहां हजारों कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन उनके बचपन के बारे में एक भी कहानी सुनने को नहीं मिलती. हमारी संस्कृति में यह एक स्थापित तथ्य है कि भगवान शिव स्वयंभू थे. उनका जन्म किसी के यहां नहीं हुआ. उनकी उत्पत्ति कहीं और से मानी जाती है.
हम जानते हैं कि उनके मित्र गणों को हमेशा पिशाच और भूत प्रेत माना गया, जो पागल हैं और विक्षिप्त से हैं. इंसानों ने उनकी पूजा की, लेकिन उनके सबसे नजदीकी लोग इंसान नहीं थे. उनके बुढ़ापे और मृत्यु के बारे में भी कुछ सुनने को नहीं मिलता. यह माना जाता है कि कोई भी महिला उनके लिए बच्चा नहीं जन सकी. शिव की सती और पार्वती से कोई संतान नहीं थी. उनकी दोनों संतानों का जन्म तांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से हुआ. हमारी संस्कृति के अनुसार गणेश की उत्पत्ति पार्वती ने चंदन के मिश्रण से की थी.
शिव के दूसरे पुत्र जिन्हें सुब्रमण्यम या मुरुगन या स्कंद नामों से पुकारा जाता है का जन्म छह अप्सराओं के छह अलग अलग गर्भों से हुआ था, और फिर वे छह अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे. दरअसल, शिव के बारे में जो कुछ भी पढ़ने-सुनने को मिलता है, उससे यही लगता है, कि वह इस पृथ्वी के नहीं हैं. शिव सूत्र में उन्हें यक्ष स्वरूपी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वह पृथ्वी के नहीं हैं.
हिन्दू परंपरा में भगवान् शिव ही ॐ हैं और यह जीवन ही है लेकिन जीवन के जिस रूप से हम परिचित हैं, यह उससे यह बिलकुल अलग है।