देवो के देव कहे जाने वाले महादेव को द्वापरयुग में गोपी भेष धारण करना पड़ा था.
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हुआ जो भगवान शिव को ऐसा करना पड़ा.
द्वापरयुग में भगवान् कृष्ण की हर लीला का एक अलग आनंद था और कृष्ण अपनी लीलाएं करते रहते थे.
भगवान् कृष्ण की यह पहली रास लीला थी, जिसमें उल्लासित लोगों की टोली ने एक साथ नाच-गाकर दिव्य आनंद में डूबकर यह रास लीला शुरू की.
दूसरी तरफ भगवान शिव ध्यान मग्न थे. अचानक भगवान् कृष्ण की रास लीला की ध्वनि सुनकर उन्होंने जब आँख खोली तो हर तरफ कृष्ण की बासुरी का स्वर था, सब रास में लीन नाच रहे थे, और गोपियों की हंसी की ध्वनी सुने दे रही थी.
यह सुनकर और देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए. उनसे नहीं रहा गया और वह रासलीला देखने के लिए तुरंत उठकर सीधे यमुना के तट पर चल दिए. वहां यमुना को पार कर देखना चाह रहे थे कि वहां क्या हो रहा है.
लेकिन उनके रास्ते में ही नदी की देवी वृनदेवी खड़ी हो गईं और उनको आगे जाने से रोकते हुए कहा -आप वहां नहीं जा सकते हैं.
इस पर शिव आश्चर्यचकित रह गए और उनसे पूछा – क्यों मैं वहां क्यों नहीं जा सकता.
देवी ने कहा – क्योंकि वहां कृष्ण की रासलीला चल रही है और वहां कोई पुरुष नहीं जा सकता अगर आपको वहां जाना है तो आपको गोपी के रूप में जाना होगा.
स्थिति को देखते हुए आखिरकार शिव जी ने कृष्ण की रासलीला देखने के लिए गोपी बनना स्वीकार कर लिया.
ऐसे में उनके सामने एक बड़ी दुविधा और आ गई कि वह गोपी के कपडे कहाँ से लायें.
तब भगवान् शिव ने उस देवी से ही गोपी के कपडे मांगे और आस-पास देखा फिर गोपी का वस्त्र पहन लिया और कृष्ण की रासलीला देखने पहुँच गए.
तो इस प्रकार रास लीला में शामिल होने के लिए भगवान् शिव गोपी बन गए.
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