त्रिदेव के रूप में ब्रह्मा विष्णु और महेश, इन तीनों देवों से ही सारी सृष्टि हैं.
भगवान् ब्रह्मा अगर सृष्टि के रचयिता हैं तो भगवान विष्णु समस्त संसार के पालनकर्ता हैं, लेकिन बात जब महेश यानि महादेव की होती हैं तो उन्हें संहारक के रूप में देखा जाता हैं.
जब-जब इस संसार में पाप बढ़ता हैं सभी जगह नकारात्मकता बढ़ती हैं उस वक़्त बुराईयों के नाश के लिए स्वयं भगवान शंकर आते हैं.
भगवान शंकर को यूँ तो भोलेनाथ कहा जाता हैं, लेकिन भगवान शिव का क्रोध हर किसी को ज्ञात हैं. यदि भोलेनाथ किसी बात से नाराज़ हो जाये तो उनके क्रोध को शांत कराना लगभग असंभव कार्य होता हैं परन्तु भक्तों द्वारा की गयी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव जल्दी शांत भी हो जाते हैं.
यही वजह हैं कि भगवान शंकर को उनके भक्त भोलेनाथ के नाम से भी पुकारते हैं.
भगवान् शिव को उनके भक्त हमेशा एक पथ प्रदर्शक के रूप में देखते आये हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोलेनाथ का धतूरा और भांग जैसे नशे करने के पीछे की क्या वजह हैं? भगवान शिव भांग का सेवन क्यों करते हैं?
भगवान् शिव से जुड़े इस विषय में हम आप को रोचक जानकारी बताएँगे.
भगवान् शंकर की तरह ही उन्हें मानने वाले उनके अनन्य भक्त अपने महादेव की इस रूचि को भी सिरोधार्य करते हैं और आज भी भांग और धतूरे का सेवन उनके द्वारा किया जाता हैं.
हम सब ने अपने बुजुर्गों से देवता और असुरों के बीच समुद्रमंथन के लिए हुए युद्ध की कहानी तो सुनी होगी हैं लेकिन उस मंथन से निकले अमृत और विषपान की जब बात आई तो कोई भी विषपान करने के लिए सहमत नहीं हो रहा था. देवता और असुरों के बीच हुए इस मतभेद के बाद देवता और दैत्य दोनों गण भगवान् विष्णु के पास इस समस्या के समाधान के लिए पहुचे. भगवान नारायण ने तब भोलेनाथ शंकर का आह्वाहन किया.
भगवान् शिव के वहां पहुचते ही मंथन के बाद निकले अमृत और विष में से बचे हुए विष का सेवन संसार की सुरक्षा के लिए महादेव ने अपने गले में उतर लिया. मंथन के बाद निकले विष में सबसे अधिक में मात्रा में धतूरे और भांग होने की वजह से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया और तभी से भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा.
भगवान शिव की तरह ही उन्हें मानने वाले उनके भक्तगण भी इस नशे को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. वैसे भगवान् शिव को इस बात के लिए भी जाना जाता हैं कि इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तो की विष से रक्षा करते हैं.
सनातन धर्म द्वारा चली आ रही यह सारी परम्पराएं चाहे तो सिर्फ कहने की बात हो सकती हैं और चाहे तो मान्यताएं हैं.
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