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तो भगवान श्री कृष्ण हो गए थे विधवा!

शायद ये बात आपने कभी नहीं सुनी होगी कि भगवान श्री कृष्ण ने विधवा का भी जीवन जिया था.

लेकिन यह सत प्रतिशत सत्य है. हमने जब महाभारत के पन्नो को उलटा तो भगवान श्री कृष्ण के विधवा जीवन के बारे में हमें पता चला.

आखिर क्यों और कैसे भगवान श्री कृष्ण विधवा हुए?

ये प्रश्न आपके मन में उठ रहा होगा.

इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें अतीत में यानि महाभारत के ज़माने में जाना होगा.

बात, महाभारत युद्ध के दौरान की है, जब किन्नरों का देवता ‘अरावन’ अर्जुन से मिलने आया और युद्ध भूमि में पांडवो का साथ देने के लिए तैयार हुआ. लेकिन युद्ध जितने के लिए पांड्वो को एक स्वैच्छिक नरबलि की  आवश्यकता थी, जिसके लिए अरावन को तैयार किया गया. अरावन अपनी बली देने के लिए तैयार तो हो गया पर उसकी एक शर्त थी.

अरावन मरने से पहले एक बार शादी करना चाहता था.

युद्ध का समय था.

अरावन से शादी करने के लिए कोई भी स्त्री तैयार नहीं हो रही थी. ऐसे में अरावन की इच्छा पुरी करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने महिला रूप (मोहिनी) धारण कर उससे शादी की और फिर तब कही जाकर अरावन ने स्वेच्छा से अपना शीश बली करने का ऐलान किया. अगले ही दिन अरावन की बली दे दी गई. चूंकि, श्री कृष्ण ने एक महिला का अवतार लेकर अरावन से ब्याह किया था, इसलिए अरावन के मरने के बाद भगवान श्री कृष्ण (मोहिनी) को विधवा की तरह विलाप करना पडा.

ख़ास बात तो यह है कि उस घटना को याद करके किन्नर अरावन को अपना भगवान मानने लगे और किन्नरों की जिंदगी में एक रात के लिए विवाह की परंपरा भी शुरू हुई.

किन्नरों के भगवान ‘अरावन’…  कौन थे

आपको ये तो पता चल गया कि किन्नरों के भगवान अरावन है. पर क्या आप ये नहीं जानना चाहते कि अरावन कौन थे और कहा से आये?

इस सवाल का जवाब भी हमें महाभारत के कहानी से ही मिलेगा.

आप जानते है कि महाभारत में द्रौपदी को पांचो पांडव भाइयो से शादी करनी पड़ी थी और नियम रखा गया था कि जब एक भाई द्रोपदी के कक्ष में होगा तो दूसरा भाई कक्ष में दाखिल नहीं होगा. भीतर कोई है, इस बात का पता चलने के पांडवो ने एक तरीका बनाया. जब भी कोई भाई कक्ष के भीतर जाएगा, वो अपने जुते दरवाजे पर ही उतार देगा, जिससे दुसरे भाई को पता चलेगा कि कक्ष के भीतर द्रोपदी के साथ कोई है और वो सचेत हो जाएगा.

एक दिन जब युधिष्ठिर अंदर थे तो एक कुता उनका जूता उठा ले गया. दरवाजे पर जूता ना देखकर, द्रोपदी से भेंट करने की इच्छा लिए अर्जुन ने सीधे कक्ष में प्रवेश किया.

उस समय युधिस्ठिर और द्रोपदी प्रेम में लीन थे, जो कि अर्जुन ने अंजाने में देख लीया.

इस बात पर द्रोपदी लज्जित हो उठी.

युधिस्ठिर ने क्रोध में आकर अर्जुन को एक साल का तीर्थ करने की सजा दे दी. बड़े भाई कि आज्ञानुसार अर्जुन तीर्थ के लिए निकल गए.

तीर्थ के दौरान अर्जुन को एक विधवा नागकन्या से प्रेम हो गया. महाभारत में कहा गया है कि अर्जुन और नागकन्या से एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम ‘अरावन’ रखा गया. एक साल बाद अर्जुन वापस वनवास में लौट गए,  लेकिन नागकन्या और उनके पुत्र ‘अरावन’ पाताल में ही रह गए.

महाभारत में युद्ध के दौरान ‘अरावन’ ने अर्जुन का साथ देकर और अपनी शीशबली देकर पुत्र होने का फ़र्ज़ अदा किया था.

ये वो तथ्य है, जिसे शायद आपने पहली बार जाना होगा.

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Dharam Dubey

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