ब्रज की लट्ठमार होली ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है।
हर साल यहाँ होली पर देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी कई पर्यटक बड़ी संख्या में लट्ठमार होली का लुत्फ़ उठाने आते है।
हम सभी जानते है कि लट्ठमार होली खासकर ब्रज में खेली जाती है लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि लट्ठमार होली क्यों खेली जाती है?
तो चलिए आज हम जानते है मस्तीभरे इस त्यौहार के बारे में कुछ ऐसी बाते जो आप पहले से नहीं जानते होंगे।
दरअसल लट्ठमार होली की शुरुआत ब्रज के बरसाना गाँव से हुई थी. इस दिन नंदगाँव के बाल-ग्वाल होली खेलने के लिए राधारानी के गाँव बरसाने जाते है। राधाकृष्ण के यहाँ पर कई मंदिर है जहाँ पर लोग बड़ी संख्या में पूजा-अर्चना करने के बाद होली खेलते है। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं और मित्रों की टोली के साथ राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेलने पहुँच जाते थे और उनके बीच खूब हँसी-मजाक और मस्ती होती थी. इस दौरान राधारानी और उनकी सखियाँ कृष्ण और ग्वाल-बाल पर डंडे बरसाया करती थी।
ऐसे में लाठी और डंडो की मार से बचने के लिए कृष्ण और उनके साथी ढालों का प्रयोग किया करते थे।
ये परंपरा बाद में धीरे धीरे लट्ठमार होली के रूप में तब्दील हो गई।
आज भी हजारों साल बाद इस परम्परा को वैसे ही निभाया जाता है जैसे उस समय भगवान कृष्ण के समय मनाया जाता था। मथुरा, वृन्दावन, नंदगाँव और बरसाने में आज भी इस परम्परा का निर्वाह उसी प्रेम और उमंग के साथ निभाया जाता है और लट्ठमार होली मनाई जाती है।
आज भी होली के समय नाचते-झूमते, मस्ती में गाते हुए पुरुष गाँव में पहुँचते है और औरतें अपने हाथ में पहले से इनके लिए लाठी तैयार रखती है। लाठी से बचने के लिए ये लोग भागते है।
ये सब इतना मस्तीभरा होता है कि वहां गया कोई भी व्यक्ति अपने आप को लट्ठमार होली खेलने से रोक नही पाता है।
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