असल में जैसा कि आप जानते हैं कि कुंभकर्ण को वरदान था कि वह छह महीने लगातार सोता था और फिर एक दिन के लिए जागकर अगले छह महीने फिर सो जाता था.
हम सभी को बताया जाता है कि यह वरदान उसने भगवान से माँगा था.
किन्तु आज हम आपको बताने वाले हैं कि यह वरदान नहीं एक श्राप था जो देवताओं ने छल से कुंभकर्ण को दिया था.
आप अगर रावण संहिता या दक्षिण की रामायण को पढ़ना शुरू करते हैं तो आपको इस पूरे सत्य का पता चल सकता है.
कहानी कुछ इस तरह से है कि कुंभकर्ण को खाने का बहुत शौक था. वह चाहता था कि जिंदगी भर वह खाता ही रहे और उसकी भूख कभी खत्म ना हो. तभी इनकी माता जी सभी भाइयों से कहती हैं कि वह भगवान को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करें और उनसे वरदान मांगे.
तो शुरुआत से ही कुंभकर्ण अपनी भूख और भोजन को लेकर ही तपस्या करने आया था. उसको इस बात से कोई मतलब नहीं था कि मेरा भाई अमर होना चाहते हैं या वह कोई अस्त्र-शस्त्र भी मांग सकता है. वह मात्र स्वर्ग चाहता था और वह भी इंद्र की जगह ताकि स्वर्ग में वह बस खाता ही रहे.
जब ब्रह्मा जी को कुंभकर्ण के मन की इच्छा का ज्ञान हुआ तो वह काफी चिंतित हो जाते हैं क्योकि अगर इसको यह वरदान दिया तो सारी पृथ्वी का भोजन ही यह अकेला खा सकता था.
क्या हुआ जब वरदान का मांगने का समय आया
तब सारे देवता ब्रह्मा जी के सामने आये और ब्रह्मा जी ने बताया कि कुंभकर्ण आज इन्द्रासन मांगने वाला है ताकि वह स्वर्ग का मालिक बन जाये. वह इंसान स्वर्ग की सारी चीजें खा जायेगा और जगत में त्राहि-त्राहि मच जायेगी.
तब सरस्वती जी ने कहा कि आप चिंता मत कीजये जैसे ही कुंभकर्ण इन्द्रासन बोलेगा में उसकी जीभ पर बैठ जाऊँगी.
हुआ भी यही जब इंद्र प्रकट हुए तो इन्द्रासन की जगह कुंभकर्ण के मुंह से निन्द्रासन निकला और ब्रह्मा जी ने तथास्तु बोल दिया.
ऐसा वरदान मिलते ही कुंभकर्ण बहुत निराश हुआ और ब्रह्मा जी से माफ़ी मांगने लगा. दया के कारण बाद में ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं बस इतना ही कर सकता हूँ कि तुम छह माह तक सोया करोगे और उसके बाद मात्र एक दिन के जागोगे और फिर अगले छह माह के लिए सो जाया करोगे.
जगत की भलाई में किया गया था छल…
वैसे देवताओं ने कुंभकर्ण के साथ यह छल जगत की भलाई के लिए किया था. क्योकि अगर यह अधिक जागता तो भोजन भी अधिक करता और देवताओं से साथ युद्ध भी अधिक कर सकता था.
शायद इसीलिए कहते हैं भगवान जो करता है अच्छा ही करता है.
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