धर्म और भाग्य

भगवान कृष्‍ण के मित्र होते हुए भी क्‍यों थे सुदामा इतने गरीब !

भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता और उनके बीच के घनिष्ट प्रेम के किस्से तो आपने ज़रूर सुने होंगे। किस तरह सुदामा के द्वार पर आने के बाद भगवान श्री कृष्ण नंगे पांव उनसे मिलने गए थे और अपने मित्र की सहायता कर उन्हे अमीर बना दिया था, ये आप सभी जानते होंगे।

लेकिन हम आज जो आपको बताने जा रहे हैं उस बारे में आप शायद ही जानते हो। आज हम आपको बताने जा रहे सुदामा जी की गरीबी के पीछे छिपा वो रहस्य, जो सिर्फ श्री कृष्ण ही जानते थे।

दरअसल सुदामा जी के गरीब होने की पीछे वजह श्रीकृष्‍ण के प्रति उनकी परम मित्रता ही थी। ये पढ़कर आपको विचित्र लग रहा होगा लेकिन ये बात एकदम सच है।

ये बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा संदीपनि मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उस वक्त एक गरीब ब्राहम्णी भगवान का नाप जपकर भिक्षा मांगा करती थी और भिक्षा में मिले धन से अपना जीवन यापन करती थी।

लेकिन एक वक्त पर उसे लगातार 5 दिनों तक भिक्षा नहीं मिली, लेकिन फिर भी उसने प्रभु पर विश्वास बनाए रखा, छठे दिन किसी व्यक्ति ने उसे कुछ चने दिए लेकिन वो चने उसने ये सोचकर नहीं खाए कि अगले दिन भगवान को भोग लगाने के बाद ही वो चने खाएगी, वो चने सिरहाने रखकर सो गई।

रात में उसकी कुटिया में कुछ चोर घुस आए और चने को सोने की मुहरे समझकर चुराने लगे, एकाएक बुढ़िया की नींद खुल गए और उसके शोर मचाने पर चोर डरकर भागने लगे और गांव वालों से भागते हुए वो संदीपनि मुनि के आश्रम में छिप गए।

भागते हुए तोर हड़बड़ाहट में वो चने की पोटली आश्रम में ही छोड़ गए और गुरुमाता ने अनजाने में वो पोटली अगले दिन सुबह लकडियां काटने जाते समय भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा को दे दी। उधर भूख ये व्‍याकुल ब्राह्मणी को जब पता लगा कि चोर उसके चने चुराकर ले गए हैं तो उसने शाप दिया कि जो भी उन चनों को खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।

जब श्री कृष्ण और सुदामा जंगल में लड़कियां काटकर लौटने लगे तो उन्हे भूख लगी लेकिन सुदामा को ये ज्ञात हो गया कि उन चनों के पीछे क्या रहस्य छिपा है, वो ब्रह्म ज्ञानी थे इसलिए उन्हे कुछ भी समझते देर नहीं लगी और इसके बाद उन्होने सारे चने खुद ही खा लिए और कृष्ण को नहीं दिए क्योकि वो नहीं चाहते थे कि उनके होते भगवान गरीब हो जाए।

इस प्रकार सुदामा को गरीबी में जीवन बिताना पड़ा हालांकि कृष्ण भी इस बात से अपरिचित नहीं थे और इसलिए उन्होने भी अंत में अपने मित्र की मदद की।

भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती इस बात का साक्षात प्रमाण है कि दोस्त के दुख और विपदाओं को दूर करने से दूसरे दोस्त को कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। श्रीकृष्‍ण जी ने भी यही किया और मुश्किल में फंसे अपने मित्र को बाहर निकाल लाए साथ ही उन्‍होंने राजा होने के बवजूद अपने मित्र की ना केवल सहायता की बल्कि उसे अपने पास स्‍थान भी दिया। ऐसा बहुत ही कम राजा-महाराजा किया करते थे।

Parul Rohtagi

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