अशोक ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया जिसके बाद लगभग 234 ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हुई.
उसके कई संतान तथा पत्नियां थीं पर उनके बारे में अधिक पता नहीं है. उसके पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया.
सम्राट अशोक का नाम संसार के महानतम व्यक्तियों में गिना जाता है.
ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था. अंत में कलिंग के युद्ध ने अशोक को धर्म की ओर मोड़ दिया. अशोक ने जहां-जहां भी अपना साम्राज्य स्थापित किया, वहां-वहां अशोक स्तंभ बनवाए. उनके हजारों स्तंभों को मध्यकाल के मुस्लिमों ने ध्वस्त कर दिया.
कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट ने अशोक की अंतरात्मा को झकझोर दिया. सबसे अंत में अशोक ने कलिंगवासियों पर आक्रमण किया और उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया. मौर्य सम्राट के शब्दों में, ‘इस लड़ाई के कारण 1,50,000 आदमी विस्थापित हो गए, 1,00,000 व्यक्ति मारे गए और इससे कई गुना नष्ट हो गए. युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ.
यहाँ अशोक से हुई थी एक बड़ी गलती
एक सवाल आज भी लोग पूछते हैं कि सम्राट अशोक के निधन के इतने शीघ्र बाद ही क्यों इस साम्राज्य का पतन हो गया?
लेकिन महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री का विचार है कि इसका मुख्य कारण ब्राह्मणों से अशोक का कटाव और वैमनस्य था. जैसा कि पता हो कि अशोक ने यज्ञों के निषेध, ब्राह्मणों के ऊपर पाबंदियां आदि कई चीजें थोप दी थी. मुख्य रूप से जब से वह दूसरे धर्म की तरफ झुका तो उसे ब्राहमणों के कर्म-कांड से नफरत होने लगी थी.
यह बैर इतना ज्यादा हो गया था कि आखिरी मौर्य सम्राट की ब्राह्मण सेनापति ने ही हत्या कर दी थी. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है ब्राह्मणों ने इसी वजह से मौर्यों का विरोध किया था. जबकि अशोक के उतराधिकारी काफी कमजोर और दिशाहीन थे. यह लोग नीति-निर्माण की कला भूल गये थे. जबकि अभी तक सभी राजा ब्राह्मणों से सलाह और विचार कर आगे बढ़ रहे थे. जबकि इस साम्राज्य में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था.
यह साम्राज्य अपनी शक्ति खो चुका था. राजसभा में किसी भी तरह की रणनीति नहीं बन रही थी. साम्राज्य की शक्ति खत्म हो चुकी थी और जब तूफ़ान उठा तो सभी लोग भयभीत होकर तितर-बितर हो गये.
इतिहास की पुस्तकों में क्या लिखा गया है?
ब्राह्मणों का दखल शासन और प्रशासन में न तो सम्राट अशोक को पसंद आ रहा था और ना ही उसकी आने वाली पीढ़ियों को. ऐसा अचानक ही हुआ और यह अशोक के लिए घटक भी हुआ. चन्द्रगुप्त मौर्य के निधन के बाद से ब्राह्मण विरोध भावनायें अशोक के मन में आई थीं. इसीलिए ब्राह्मणों को सत्ता और शासन से अलग किया गया था.
बोद्ध और जैन धर्म को प्रधानता दी जा रही थी. सभी यह भूल गये थे कि निति निर्माण में ब्राह्मणों का विशेष योगदान होता है.