अगर कश्मीर को धरती पर मौजूद स्वर्ग कहा गया है तो क्या स्वर्ग सब के लिए नहीं होता?
क्या इस स्वर्ग में कश्मीरी पंडितों के लिए बिल्कुल जगह नहीं है?
डोगरा शासन (1846-1947) के दौरान 15 से 16 प्रतिशत आबादी कश्मीरी पंडितों की थी! फिर सन 47 के दंगों के बाद, कश्मीरी पंडितों की 20 प्रतिशत आबादी ने कश्मीर को छोड़कर कहीं और बसने का इरादा कर लिया था.
1990 के दशक में यहाँ उभरते इस्लाम के चलते, कश्मीरी पंडितों का मानो नामो-निशाँ मिट चूका है.
वर्तमान मैं कश्मीरी आबादी का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा कश्मीरी पंडितों का है! केवल 5 प्रतिशत!
1990 के दशक में इस्लाम के अनुयायिओं के सिर पर ना जाने क्यों हिंदुत्व को कश्मीर की जड़ से मिटाने का इरादा इजाद होने लगा था! जो राज्य अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, वह राज्य अब अपने खून-खराबे के लिए प्रख्यात हो चुका है!
19 जनवरी 1990, यह वह मनहूस दिन था, जब कश्मीर की मस्जिदों ने कश्मीरी पंडितों को काफिर घोषित करार दिया था! एक सवाल अब जहन में यह उठता है कि क्या यदि एक व्यक्ति, अल्लाह को ना मानते हुए, अपने धर्म के देवी देवताओं को मानता है, तब क्या वह काफिर बन जाता है? यह घोषणा कश्मीर के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए एक शर्म की बात थी! और सबसे ज्यादा उन लोगों को शर्म आनी चाहिए जिन्होंने धर्म के नाम पर कश्मीर के साथ ऐसा भद्दा मज़ाक किया! जी हाँ! मैं वहाँ के इस्लामी धर्मगुरुओं की बात कर रहा हूँ!
कश्मीरी पंडित बेघर हुए, उनको ज़बरन अपनी ज़मीन, कश्मीर में बिताया इनका वह अनमोल समय, कश्मीरी पंडितों को सब छोड़ कर जाना पड़ा! क्यों? महज़ उनकी कौम अलग थी इसलिए?
शर्म आती है क्योंकि ऐसे बेअक्ल लोगों की भी सुनी जाती है!
जहां एक तरफ हम ISIS जैसे आतंकी संगठन की निंदा करते हैं, वहीँ हम इस बात को पूरी तरह नकार देते हैं कि हमारे, खुद के देश में भी ऐसे लोग सांस लेते हैं, जिन्हें शायद जीने का हक़ ही नहीं है!
आए दिन कश्मीरी पंडितों का समूह उमड़ पड़ता है और अपनी कश्मीर वापसी की बात चिल्ला-चिल्लाकर सबसे सामने रखता रहता है! लेकिन मैं पूंछता हूँ कि इससे क्या फायदा होने वाला है? जब कश्मीर ने कश्मीरी पंडितों को काफिर कहकर उनका अपमान कर डाला तो क्या उनका वहाँ जाना सही कहलाएगा? और फिर जब आपकी सरकार ही आपकी बात को दो दशकों से टालती रही है तो फिर इस बात का क्या फायदा?
अगर RSS जैसा संगठन घर-वापसी जैसा आंदोलन करता है तो तुरंत दुनिया भर के इस्लाम धर्म के ठेकेदार हिंदुत्व के विरोध में लग जाते हैं. लेकिन कश्मीरी पंडितों के साथ हुई यह घटना किसी की नज़रों के सामने कभी नहीं आती!
ऐसा क्यों?
मेरा सवाल मुसलामानों से है, मेरा सवाल सरकार से है(जो थी और जो है) और मेरा सवाल इस देश की जनता से है!
मोदी सरकार ने तो यह कह दिया की, सरकार कश्मीरी पंडितों के लिए कश्मीर में काम्प्लेक्स बनवा देगी लेकिन क्या इससे उनका खोया हुआ सम्मान उन्हें फिर मिल सकेगा?
मैं भारतीयों से पूंछना चाहता हूँ की उनके इस विषय में क्या विचार हैं?
फिर चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक! आखिर हर मनुष्य को अपना हक़ मिलना ही चाहिए!
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