कुंती पुत्र कर्ण – महाभारत के युध्द में कौरवों की तरफ से कर्ण ने बहुत योगदान दिया. वैसे अगर देखा जाए तो कर्ण पांडवो का भाई था, लेकिन वो लड़ा कौरवों की ओर से.
आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
क्या कारण था कि कुंती के पुत्रों को छोड़ कुंती पुत्र कर्ण अपने ही दुश्मनों से हाथ मिला बैठा ?
एक प्रतियोगता है कारण
द्रौपदी को पाने के लिए जब बड़े-बड़े राजा-महाराजा, युवराज एकत्रित हुए थे, तब उस सभा में कर्ण भी अपना हुनर दिखाने शामिल हुआ.
देवता इस बात को जानते थे कि कर्ण कुंती पुत्र है, लेकिन पांडव और बाकी लोग इससे अनजान थे. जब प्रतियोगिता में बड़े बड़े राजा असफल होने लगे तब कुंती पुत्र कर्ण भी अपने हुनर को दिखाने के लिए आगे बढ़ा.
उसे इस तरह से आगे बढ़ता देख पांडवों ने एक साथ उसके कुल, खानदान, माता, पिता का नाम पूछ लिया. उस समय कुंती पुत्र कर्ण की वेश भूषा किसी युवराज की तरह नहीं थी. ये देख लोगों को संदेह हुआ. अर्जुन ने कर्ण को इस तरह से देखकर कहा कि ये क्षत्रिय नहीं हो सकता. अर्जुन को बोलते देख भीम ने कहा कि गैर क्षत्रिय को इस प्रतियोगिता में भाग लेने की ज़रुरत नहीं. भीम ने कर्ण से उसके पिता का नाम पूछा. कर्ण ने अपने पिता का नाम अधिरथ बताया. ये सुनते ही सभा में मौजूद सभी लोग कर्ण को घूरकर देखने लगे.
भीम के साथ सभी ने कुंती पुत्र कर्ण को एक पल में सूत पुत्र बना दिया. उस समय कर्ण की बहुत निंदा हुई. कर्ण की निन्दा कोई और नहीं, बल्कि उसके अपने भाई कर रहे थे. इस तरह से अपने ऊपर लोगों को बोलते देख कर्ण का आत्मविश्वास हिल गया.
कुंती पुत्र कर्ण सबके तीखे बाण सह रहा था, लेकिन इन सब के बीच बैठा दुर्योधन कर्ण को ध्यान से देख रहा था. दुर्योधन समझ गया था कि अर्जुन जैसा उसके पास कोई धनुर्धर नहीं है. कर्ण की क्षमता को भांप वो झट से सभा में खड़ा हो जाता है और कर्ण को अपना दोस्त घोषित करता है. वो कहता है कि अब कर्ण एक युवराज का दोस्त है और शास्त्रों में भी कहा गया है कि युवराज के दोस्त युवराज सरीके होते हैं.
दुर्योधन की इस बात का सभा में बैठे सभी लोग समर्थन किए और कुंती पुत्र कर्ण जो अब तक सूत पुत्र के नाम से अंदर ही अंदर गड़ा जा रहा था अब अपनी छाती गर्व से चौड़ा करता है. दुर्योधन उसे अपने बगल में बिठाता है, तो कर्ण इससे बहुत खुश हो जाता है. उसी समय कर्ण ने पांडवों को अपना दुश्मन मान लिया था. उसने तय कर लिया था कि वो अब से पांडवों का दुश्मन है और उनका अहित करने से उसे कोई रोक नहीं सकता .
बस, उसी पल से कुंती पुत्र कर्ण पांडवों का दुश्मन बन गया और कौरवों की तरफ से महाभारत का युध्द लड़ा.
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