इस दुनिया में अनगिनत लोग रहते है जो कई धर्मों को मानते है।
अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों के अपने रीति-रिवाज़ और मान्यताएं होती है, जिन्हें ये लोग बड़ी ही आस्था से निभाते है।
इन रीति-रिवाजों के साथ-साथ कई तरह के उसूल और नियम भी होते है जो उस धर्म को मानने लोग उसका पालन करते है। वैसे तो हर धर्म में कुछ ना कुछ ऐसा होता है जो उसे बाकी धर्मों से अलग करता है। लेकिन अगर सभी धर्मों के मूल सार को देखा जाए तो सभी धर्म सिर्फ इंसानियत का पाठ पढ़ाते है।
आज हम संसार के एक ऐसे ही धर्म की बात करने जा रहे है जो इंसानियत का पाठ पढ़ाता है।
जी हाँ आज हम इस्लाम धर्म के बारे में बताने जा रहे है।
इस्लाम धर्म में अल्लाह को समय पर याद करना और उसकी इबादत करने पर जोर दिया गया है। लेकिन इस्लाम में जुम्मे की नमाज़ का बड़ा महत्व है। जुम्मा यानि शुक्रवार के दिन नमाज़ पड़ने को अतिआवश्यक माना गया है। लेकिन बहुत से लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि आखिर जुम्मे की नमाज़ को इतना महत्त्व क्यों दिया जाता है।
दरअसल इस्लाम में जुम्मा को अल्लाह के दरबार में रहम का दिन माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन नमाज़ पढ़ने वाले इंसान की पूरे हफ्ते की गलतियाँ अल्लाह माफ़ कर देते है। और उसे आने वाले दिनों में एक अच्छा जीवन जीने का संदेश देते है। इसके अलावा कुछ इस्लामिक तथ्यों में शुक्रवार के दिन अल्लाह द्वारा आदम को बनाया गया था और इसी दिन आदम की मृत्यु भी हुई थी। वहीं कुछ इस्लामिक मान्यताओं का मानना है कि स्वयं अल्लाह ने ही शुक्रवार का दिन चुना था। इसलिए जुम्मा यानि शुक्रवार के दिन को इस्लाम धर्म में महत्वपूर्ण माना गया है।
इन तथ्यों के अनुसार इस्लाम धर्म में जुम्मे की नमाज़ का बड़ा महत्त्व बताया गया है। इस दिन हर वो इंसान जो इस्लाम धर्म को मानता है वो जरुर नमाज़ पढ़ने जाता है।