विधान सभा चुनावों में वोटिंग के बाद भी यही कयास लगाया जा रहा था कि जाटों ने भाजपा के पक्ष में वोट नहीं किया है.
हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के बाद राजनीतिक हल्कों में कयास लगाए जा रहे थे कि आरक्षण और हरियाणा में आंदोलन के दौरान हुई हिंसा को लेकर जाट भाजपा से नाराज है और इसका बदला वे यूपी विधान सभा चुनावों में लेंगे.
यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान जाट मतदाता शायद भाजपा के पक्ष में मतदान न करें. क्योंकि राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजीत सिंह चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान सभी रैलियों में कहते रहे कि भाजपा ने जाटों को धोखा दिया है.
कहा जा रहा था कि पश्चिमी यूपी में जाट अपनी पहचान की राजनीति करते हैं और अजीत सिंह का वजूद बनाए रखने के लिए वे हर हाल में भाजपा को छोड़कर राष्ट्रीय लोकदल के पक्ष में मतदान करेंगे.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं कि पश्चिम यूपी में सभी जाट मतदाताओं ने अजीत सिंह और उनकी राष्ट्रीय लोकदल के पक्ष में मतदान किया हो.
जाट मतदाताओं को एक बहुत बड़े तबके ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है.
उसके पीछे कारण है. क्योंकि पश्चिम यूपी की करीब 59 सीटों पर मुस्लिमों और जाटों का प्रभाव लगभग बराबर है. इन्ही में अजित सिंह के प्रभाव वाला बागपत और आसपास के क्षेत्र भी हैं.
इस क्षेत्र में मुजफ्फरनगर दंगों से पहले जाट और मुस्लिमों का गठजोड़ अक्सर निर्णायक होता था और वह अजीत सिंह के समर्थन में ही जाता था. लेकिन यहां दंगों के बाद जाट और मुस्लिमों के बीच दूरी आ गई है.
यही कारण है कि इस बार जहां जाटों के प्रति मुस्लिमों के मन में दूरी थी वहीं जाटों ने भी मुस्लिमों को लेकर गुस्सा था. साथ ही जाट मतदाता भी यह जान रहे थे कि दो या तीन विधान सभाओं को छोड़कर कहीं भी जाट इस स्थिति में नहीं है कि वो अकेले के दम पर सीट निकाल दे.
अजीत सिंह की ताकत मुस्लिमों और जाट को मिलाकर बनती थी जो लोकसभा चुनाव में टूट चुकी थी. इस बात को अजीत सिंह और उनका दल भले ही न समझ रहा हो लेकिन जाट मतदाता जा रहा था.
यही कारण है कि जाट मतदाताओं ने भाजपा को इस कारण से भी मतदान किया कि वो अकेले के दम पर जीत हासिल नहीं कर सकते हैं.
इसलिए लोकदल के पक्ष में मतदान करके हारने और सपा व बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी को जीताने से बेहतर है कि भाजपा के पक्ष में मतदान करके उसके प्रत्याशी को ही जीतवाने में भूमिका अदा की जाए.
क्योंकि देखा गया है कि इस क्षेत्र में यदि अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल को छोड़ दिया जाए तो जाट मतदाताओं की वास्तविक पसंद भाजपा ही है.