हिन्दू एक ऐसा धर्म है जो हर वस्तु को अपनी आस्था से जोड़कर उनकी पूजा करता हैं .
कभी आपने सोचा है क्यों ?
वास्तव में हिन्दू कोई धर्मं नहीं.
हिन्दुस्तान में रहने के कारण यहाँ के निवासी को हिन्दू कहा गया और हिन्दुस्तान में रहने वालो की मान्यता को मानना उनका धर्म कहा गया.
इस प्रकार भारत में हिन्दू धर्म का प्रारंभ हुआ.
हिन्दू समझते थे कि इंसान दुनिया का सबसे खुबसूरत प्राणी है जिसके पास बाकी जीव जन्तु और पेड़ पौधों की अपेक्षा कई चीजे ज्यादा है. उनको पता था की इंसान जैसा देवता नहीं और इंसान जैसा राक्षस नहीं. इंसान एक स्वार्थी प्राणी भी है और इंसान एक सेवी प्राणी भी है लेकिन किस इन्सान में क्या गुण है ये कोई नहीं जनता था.
हमारे पूर्वजो ने सोचा कि अगर हमें प्रकृति की रक्षा करनी है तो कुछ ऐसा सोचना होगा कि दुनियां में हर चीज का सम्मान भी हो और उनको सुरक्षित भी रखा जा सके इसलिए आस्था से जोड़ा गया.
इंसान की आस्था जिससे होती है वह उसको कभी नुक्सान नहीं पहुंचता और नहीं ही उसको खत्म होने देता. यही सोच के साथ हिन्दुओं ने प्रकृति की हर वस्तु की पूजा करना शुरू कर दिया.
जिन वस्तु या पेड़ या जीव में सम्पूर्ण गुण पाया गया उसको माँ के समान सम्मान देने के लिए उनके नाम के साथ माँ शब्द जोड़ दिया गया जैसे:-
धरती जिस पर हम रहते हैं उसको माँ की तरह सम्मान दिलाने के लिए धरती माँ कहा गया.
गाय, जिसका मलमूत्र सब उपयोगी होता है उसका हर अंग कीमती और गुणी पाया गया तो उसको भी माँ की संज्ञा दे दी गई.
तुलसी का पेड़ जिसके हर भाग में विशेष गुण पाया गया और उसे मानव हित के लिए उपयोगी मानकर तुलसी के नाम के साथ भी माँ शब्द जोड़ दिया गया.
हिन्दू हर कीमती और गुणवान वास्तु को माँ की संज्ञा देता है क्योंकि उनकी मान्यता थी की माँ से श्रेष्ठ और सम्मानीय शब्द और रिश्ता कोई नहीं.
इसलिए हर गुणवान वस्तु के नाम के साथ माँ लगा कर अपनी भावना और आस्था से जोड़ दिया गया.
आने वाली उनकी हर पीढ़ी हर वस्तु का सम्मान करे और उससे भावनात्मक रूप से जुड़कर पीढ़ी दर पीढ़ी उन चीजो का महत्व कायम रख कर अपनी अगली पीढ़ी को दे सके और उन जीवों और वस्तु को विलुप्ति से बचा सके.
इसलिए हिन्दु हर जीव जन्तु और पेड़ पौधों की पूजा करते हैं.