पेशाब और शौच एक प्राकृतिक क्रिया हैं, लेकिन हम इंसान इसमें भी धर्म को ले आये?
सुनने में अजीब तो लगता ही हैं क्योंकि हम सभी पैदा तो इंसानों के रूप में ही हुए थे और इसी रूप में विकास भी किया, लेकिन आगे चल कर खुद ही एक दूसरों को धर्म में बाँट लिया लेकिन प्रकृति ने हम इंसानों में ऐसा कोई भेद-भाव नहीं किया. प्रकृति द्वारा तय की गयी हमारे शरीर की हर प्राक्रतिक क्रिया सामान रूप से हम सब इंसानों में मिलती हैं.
लेकिन हर सभ्यता, हर धर्म में इन क्रियाओं को करने के अपने अलग-अलग तरीके हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि पेशाब और टॉयलेट जैसी प्रक्रितिक क्रियाओं का हिन्दू तरीका ही क्यों सही माना जाता हैं, आईएं आज हम आप को बताते हैं?
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कहा जाता हैं कि पेशाब बैठकर ही करना चाहिए क्योंकि जब खड़े हो कर पेशाब की जाती हैं तो रज-तम तरंगे इकट्टा हो कर नीचे की ओर प्रवाहित होकर पैर की तरफ जाती हैं, जिससे दोनों पैर के तलवों में नकारात्मक उर्जा आती हैं. यह नकारात्मक उर्जा पाताल से निकलने वाली कष्टदायक नकारात्मक उर्जा को अपनी ओर खिचती हैं. इन बातो के अलावा एक और बात यह कही जाती हैं कि पैर से निकलने वाली ऐसी उर्जाएं काली शक्तियों को भी आकर्षित करती हैं जो किसी भी व्यक्ति के शरीर रज-तम बढ़ाती हैं.
वही शौच के लिए भी हिन्दू धर्म में ऐसी ही मान्यता हैं. हम सब ने इस विषय में यह बात तो सुनी होगी कि इंडियन टॉयलेट और वेस्टर्न टॉयलेट में काफी फर्क हैं. जहाँ भारतीय पद्धति में उकडू बैठते हैं और पानी का इस्तेमाल करते हैं वही पाश्चात्य सभ्यता में कमोड में किसी कुर्सी की तरह बैठते हैं और पानी की जगह टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करते हैं. टिश्यू पेपर का इस्तेमाल इसलिए गलत माना जाता हैं क्योकि कागज पृथ्वी तत्व से बना होता हैं और पेपर मल में मौजूद रज-तम साफ़ नहीं कर पाता हैं, जबकि पानी के इस्तेमाल से यह हानिकारक तत्व शरीर से नष्ट हो जाते हैं. इसलिए इन प्राकृतिक क्रियाओं में हिन्दू पद्धति के इस्तेमाल को ज्यादा सही बताया गया हैं.
इस पोस्ट के माध्यम से हम किसी एक ही धर्म का प्रचार या किसी एक धर्म को ही सही और बाकि धर्मों को गलत नहीं ठहरा रहे हैं.बल्कि इस लेख के पीछे हमारी मंशा यह हैं कि कोई भी सकारात्मक बात चाहे वह किसी भी धर्म यह सभ्यता से जुड़ी हैं फायदे मंद हैं तो उसे अपनाने में कोई हर्ज़ नही करना चाहियें.
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