कॉलेज पढ़ने-लिखने और नयी ज़िन्दगी में क़दम रखने का ज्ञान देने के लिए होते हैं|
लेकिन आजकल वहाँ शिक्षा की खबरें कम और बे-सर पैर की कॉंट्रोवर्सीज़ ज़्यादा दिखाई-सुनाई देती हैं| अभी हाल ही में दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेन कॉलेज की ही बात लीजिये! वहाँ के प्रिंसिपल वाल्सन थम्पू ने जब से कार्यभार संभाला है, कॉलेज किसी ना किसी कॉन्ट्रोवर्सी में फँसा रहा है|
ताज़ी कॉन्ट्रोवर्सी कॉलेज के एक छात्र की है जिसके ख़िलाफ़ पुलिस ने गुंडागर्दी का आरोप दर्ज किया है| यह वही छात्र है जिसने कुछ समय पहले प्रिंसिपल थम्पू पर इलज़ाम लगाया था कि उन्होंने उस छात्र के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिले में अड़ंगा डाला था!
कौन सच्चा है कौन झूठा कह पाना मुश्किल है पर ऐसी ही कॉलेज कॉंट्रोवर्सीज़ और भी कई नामवर कॉलेजेस में सुनने को मिलती हैं, जैसे की हिन्दू कॉलेज जहाँ प्रिंसिपल ने अध्यापकों के ख़िलाफ़ कार्यवाही कर डाली सिर्फ इसलिए कि उन्होंने दिल्ली के गवर्नर से कॉलेज के प्रशासन के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी!
पर ऐसा होता क्यों है? क्यों बड़े कॉलेजों में फोकस पढ़ाई से हट कर यहाँ-वहाँ भटक जाता है?
आईये ज़रा इस पर कुछ विचार करें:
1) पहला कारण जो हमें समझ आता है वो यह कि ऐसे कॉलेजेस में ज़्यादातर बच्चे अमीर और समाज के उच्च वर्ग से आते हैं| सिर्फ बच्चे ही नहीं, परिवार भी कहीं ना कहीं अपने आप को शिक्षा संस्थानों से बेहतर समझते हैं| ऐसे में मन-मुटाव और विचारों की गहमा-गहमी होना लाज़मी है! बस यही विवाद कब काबू से बाहर हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता!
2) चूंकि कॉलेजस का ऊँचा नाम है, इसीलिए उनसे उम्मीदें भी ज़्यादा होती हैं| अगर उम्मीद टूटती है तो मत-भेद होना आम सी बात है| कॉलेज अपने नाम को भुना छात्रों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं लेकिन फिर उम्मीद अनुसार आज़ादी और सुविधाएँ ना दे पाने के कारण निहित स्वार्थ के लिए लोग इन शिक्षा संस्थानों में कॉन्ट्रोवर्सी पैदा कर देते हैं!
3) ज़रूरी नहीं कि छात्र ही कॉन्ट्रोवर्सी का कारण हों| कई बार अध्यापक भी इस में बराबर के ज़िम्मेदार होते हैं| देखने में आया है कि ना सिर्फ छात्र-छात्राएँ एक दूसरे से मुक़ाबला करते हैं जहाँ तक फैशन और सुन्दर दिखने की बात आती है, अध्यापक भी इस होड़ में पीछे नहीं हैं! कई बार तो पता ही नहीं चलता कि टीचर कौन है और स्टूडेंट कौन? अब पढ़ाई के अलावा बाकी सभी कामों पर ध्यान दिया जाएगा तो पंगा तो होगा ही!
4) ख़ामख़्वाह तीस मार खां बनने की ज़िद भी कॉलेज को बदनाम कर देती है! अपने आप को दुनिया का सबसे अच्छा कॉलेज समझना कोई बुरी बात नहीं लेकिन दूसरों को नीचा दिखाना बेवकूफी है! ऐसे में आप दुश्मन ही पैदा करते हैं जो आये दिन आपके लिए नयी-नयी मुसीबतें लेकर आएँगे|
5) कॉलेज को कॉलेज ही रहने दिया जाए तो बेहतर है लेकिन उसे भी राजनीती का अड्डा बना दिया जाता है| अध्यापकों से लेकर कॉलेज के चपरासी तक हर कोई राजनीती के रंग में रंगा हुआ है| अलग-अलग विचारधाराओं और राजनैतिक पार्टियों के प्रभाव में अच्छे-बुरे सभी काम होते हैं जो नित नयी कॉन्ट्रोवर्सी खड़ी कर देते हैं!
हम तो सिर्फ़ यही आशा कर सकते हैं कि कॉलेज प्रशासन और अध्यापक मिल कर एक ऐसा परिवेश बनाएँ जिस से कि बच्चों को एक आदर्श शिक्षा का संस्थान मिल सके, ना कि कॉंट्रोवर्सीज़ का अड्डा!