धर्म और भाग्य

आखिर हम गलतियां क्यों करते हैं? जानिए जे. कृष्णमूर्ति से

आप फूल क्यों तोड़ते हैं? पौधों को क्यों नष्ट करते हैं? क्यों आप फर्नीचर नष्ट करते हैं या कोई कागज़ इधर-उधर फेंक देते हैं. आपको ऐसा कार्य न करने के लिए कितने ही बार टोका गया होगा या रोका गया होगा पर ये सब आप करते नहीं थकते. अपनी गलतियों को आप इसी तरह दोहराते जाते हैं. लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता आपको कि ऐसे कार्य करते वक़्त आप अविचारशीलता की अवस्था में होते हैं? ये कार्यकलाप आप इसलिए करते हैं क्योंकि आप असावधान रहते हैं. आप ऐसे करते वक़्त कुछ सोचते ही नहीं. आपका मन तंद्रा में रहता है. आप पूर्णतः सजग नहीं हैं. वहां होकर भी स्वयं उस स्थान पर उपस्थित नहीं हैं. फिर ऐसी अवस्था में आपको मना करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता. आप उससे कुछ ग्रहण कर ही नहीं पाएंगे.

वहीं दूसरी ओर अगर मना करने वाले आपको विचारशील होने में, सही अर्थों में सजग होने में, वृक्षों, पक्षियों, सरिता और बसुधा के अद्भुत ऐश्वर्य का आनंद लेने में आपकी सहायता कर सकें. तब आपके लिए एक छोटा-सा इशारा भी काफी होगा. तब फिर आपके अंदर एक तरह की नई अनुभूति जिसको हम दूसरे शब्दों में कहें तो संवेदनशीलता विकसित हो चुकी होगी. तब आप पहले की तरह गलतियां नहीं दोहराएंगे. तब तो आप प्रत्येक वस्तु के प्रति संवेदनशील और सचेत हो चुके होंगे.

लेकिन सोचने वाली बात ये है कि ये कितने दुर्भाग्य का विषय है कि ‘ये करें’, ‘ये न करें’ कहकर कैसे हमारी संवेदनशीलता ही नष्ट कर दी जाती है. फिर आपके माता-पिता, शिक्षक, समाज, धर्म, पादरी, आपकी खुद की महत्वकांक्षाएं, आपका लालच और ईर्श्याएं, ये सभी आपको कहते रहते हैं- आप ये करें और ये न करें. हमें जितना हो सके उतना इन ‘करने’ और ‘न करने’ से मुक्त रहना चाहिए. इसके साथ ही आपको संवेदनशील भी होना चाहिए ताकि आप सहज दयालु बन सकें और स्थितियों को बेहतर ढंग से समझ पाएं. जैसे आप किसी को चोट न पहुंचाएं व इधर-उधर कागज़ न फेंकें. अपनी राह का पत्थर बिना हटाये आगे न बढ़ें. इन सारी बातों के लिए अंकुश की आवश्यकता नहीं बल्कि विचारशीलता की ज़रूरत होती है.

गलतियां करने के लिए सोचना नहीं पड़ता है, वो तो खुद-ब-खुद हो जाती हैं. क्योंकि उन्हें करने के लिए सचेत नहीं रहना पड़ता यानी होश के बगैर ये कदम उठ जाते हैं और हम ऐसे में गलतियां कर बैठते हैं. अगर हम अपने मन में विचारशीलता का दीपक जलाएं तो न जाने होने वाली कितनी ही गलतियों का दोष हम पर से उतर सकता है. लेकिन हम सहज होने से घबराते हैं, हम अपनी आँखें खोलने से बचते हैं. हमें अन्धकार में रहने में ही आनंद आता है. हमने तो सोचना-समझना ही जैसे बंद कर लिया है तो भला विचार कौन करे कि क्या अर्थ है और क्या अनर्थ? हम तो बस चले जा रहे हैं बिना सोचे-समझे कि आखिर जा किधर रहे हैं और पहुंचना कहां है?

सवाल कई सारे होंगे आपके मन में तो थोड़ा अपने से भी बातें करिए. उसको भी जानिए, सचेत बनिए और विचारशील बनकर बार-बार होने वाली गलतियों से छुटकारा पाइए.

Devansh Tripathi

Share
Published by
Devansh Tripathi
Tags: Featured

Recent Posts

इंडियन प्रीमियर लीग 2023 में आरसीबी के जीतने की संभावनाएं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) दुनिया में सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीग में से एक है,…

2 months ago

छोटी सोच व पैरो की मोच कभी आगे बढ़ने नही देती।

दुनिया मे सबसे ताकतवर चीज है हमारी सोच ! हम अपनी लाइफ में जैसा सोचते…

3 years ago

Solar Eclipse- Surya Grahan 2020, सूर्य ग्रहण 2020- Youngisthan

सूर्य ग्रहण 2020- सूर्य ग्रहण कब है, सूर्य ग्रहण कब लगेगा, आज सूर्य ग्रहण कितने…

3 years ago

कोरोना के लॉक डाउन में क्या है शराबियों का हाल?

कोरोना महामारी के कारण देश के देश बर्बाद हो रही हैं, इंडस्ट्रीज ठप पड़ी हुई…

3 years ago

क्या कोरोना की वजह से घट जाएगी आपकी सैलरी

दुनियाभर के 200 देश आज कोरोना संकट से जूंझ रहे हैं, इस बिमारी का असर…

3 years ago

संजय गांधी की मौत के पीछे की सच्चाई जानकर पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी आपकी…

वैसे तो गांधी परिवार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और उस परिवार के हर सदस्य…

3 years ago