आपको क्या लगता है कि भगवान से गलतियाँ नहीं होती हैं?
वह जो करता है सही करता है?
अगर आपको लगता है कि भगवान से कोई गलती नहीं होती है तो आप गलत हैं. हमारे शास्त्रों में भगवान की गलतियाँ भी लिखी हुई हैं.
एक बार ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं से एक ही गलती हुई थी. इस गलती के चलते तीनों की देवताओं को ऋषि ने श्राप भी दिया था.
तो आइये जानते हैं कि क्या था पूरा मामला और कौन थे वह ऋषि जिसके क्रोध से काँप गये थे भगवान-
शास्त्रों में इस कहानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि एक बार ऋषि भृगु को इच्छा हुई कि वह जीवन के सत्य और ज्ञान के विषय में किसी से शिक्षा ग्रहण करें.
इस ऋषि के बारे में यह भी लिखा गया है कि इनके पैरों में आँख थी.
जब ऋषि को लगा कि मुझे यह ज्ञान कहीं और से नहीं ब्रह्मा-विष्णु और महेश इन तीनों की ही शरण में प्राप्त हो सकता है. कोई और इन्सान मुझे कुछ ज्यादा नहीं सिखा सकता है.
इसी कारण से भृगु ऋषि सबसे पहले ब्रह्मा जी के दरबार में जाते हैं और उनको ज्ञान देने के लिए विनम्रता से पुकारते हैं.
ब्रह्मा जी जो आवाज लगाई
लेकिन ऐसा बोला जाता है कि तब ब्रह्मा जी ध्यान में लीन थे और उन्होंने इसकी आवाज का जवाब नहीं दिया. तब इस ऋषि ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि पृथ्वी पर इनकी पूजा नहीं की जाएगी.
तब वह गये शिव ले पास
जब इनको ऋषि को लगा कि मेरा अधूरा ज्ञान शिव भगवान पूरा कर देंगे तो वह शिव के पास जाते हैं और उनको पुकारते हैं. किन्तु ऐसा बोला जाता है कि तब शिव भगवान पार्वती जी से बातें करने में व्यस्त थे. तब ऋषि ने इनको श्राप दिया था कि आपके लिंग की पूजा होगी.
विष्णु जी ने जब अनसुनी कर दी इनकी बात
अंत में जब भृगु ऋषि विष्णु जी के पास गये तो विष्णु जी ने इनकी बात अनसुनी कर दी थी. इस बात से ऋषि का क्रोध बहुत बढ़ जाता है.
और गुस्से में वह विष्णु जी की छाती पर अपना पैर जोर से मार देते हैं.
कहानियां बताती हैं कि जब ऐसा हुआ तो सभी देवताओं को अपनी गलती का आभास होने लगता है.
ऋषि के क्रोध को देखते हुए विष्णु इनके पैर पकड़ लेते हैं और पैर दबाना शुरू कर देते हैं. पैर दबाते-दबाते विष्णु जी चालाकी से ऋषि के पैर में लगी आँख निकाल देते हैं.
इससे ऋषि का क्रोध शांत हो जाता है. किन्तु इस पैर के कारण विष्णु जी से लक्ष्मी जी इनके दिल से निकलकर दूर चली जाती हैं.
बाद में विष्णु जी द्वारा सालों की तपस्या से लक्ष्मी जी वापस विष्णु जी के पास आती हैं.
किन्तु इस पूरी घटना से तीनों ही देवताओं को अपनी-अपनी गलती का एहसास हो जाता है. सभी जानते थे कि गलती हमारी ही है. इसलिए आगे ऐसा न करने का प्रण तीनों लेते हैं.
लेकिन इसीलिए इन्हीं श्रापों के कारण ब्रह्मा जी की पूजा नहीं की जाती है और शिव के लिंग की पूजा का दौर शुरू हुआ है.
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