भिखारी भीख क्यों माँगते है – अच्छा आपने कभी भिखारी को भीख देते समय, उससे यह पूछा है कि उसको अगर काम दे दिया जाए तो क्या वह भीख मांगना छोड़ देगा?
आप यह सवाल उन भिखारियों से तो जरुर पूछ लीजिये जिनको आप भीख देते हैं.
भारत में कुछ ही लोग ऐसे हैं जो अपने शारीरिक विकार के चलते काम नहीं कर पा रहे हैं और तब वह भीख मांगने को मजबूर हैं.
असल में हाथ-पैर सही होते हुए भी भिखारी भीख क्यों माँगते है! जो लोग भीख मांग रहे हैं वह सच में कुछ काम करना ही नहीं चाहते हैं. आप उनसे बोलेंगे कि चलिए आपको काम देते हैं तो वह आपको उल्टा जवाब दे देंगे या आपसे दूर चले जायेंगे.
भिखारी भीख क्यों माँगते है – सच्चाई यह है कि इन लोगों को भीख से इतना पैसा मिल जाता है कि इनको शारीरिक कष्ट उठाकर काम करना अच्छा ही नहीं लगता है. आप इन लोगों पर दया करके इनको पैसे देते हो और उन पैसों से यह लोग नशा और अय्यासी करते हैं. काम करके इनको अपना जीवन बर्बाद ही नहीं करना है. पूरा महीना काम करके मेहनत की रोटी खाना इनको अच्छा ही नहीं लगता है. यही वजह है भिखारी भीख क्यों माँगते है.
हम फिर बोल रहे हैं कि भारत में कुछ ही प्रतिशत भिखारी ऐसे हैं जो अपने शरीर की मज़बूरी के कारण भीख मांग रहे हैं.
अगर सरकारी आंकड़ों की मानें तो देश की राजधानी दिल्ली में 60,000 से ज्यादा भिखारी मौजूद हैं. आगे यह रिपोर्ट बताती है कि इनमें से 90 फीसदी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों से यहां आए हुए हैं. अब आप इस आंकड़े पर गौर करें कि जब यह लोग दिल्ली के नहीं हैं तो क्या दिल्ली सिर्फ और सिर्फ भीख मांगने आये हैं? सच यह है कि यह लोग भीख मांगने के लिए दिल्ली लाये गये हैं. जिस तरह से भिखारियों के गैंग चल रहे हैं वह बाहर के राज्यों से खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश से भिखारी दिल्ली, मुंबई और बैंगलोर जैसे शहरों में लेकर आता है.
वहीँ देश में बात करें तो भारत में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं. इनमें से लगभग 79 हजार यानि 21 फीसदी साक्षर हैं. आश्चर्य तो तब होता है जब पता चलता है कि इन 79 हजार में से करीब 3000 ऐसे हैं जिनके पास कोई न कोई टेक्निकल या प्रोफेशनल कोर्स का डिप्लोमा है. अब सोचने वाली बात यह है कि यह पढ़े-लिखे लोग तो सरकार से काम मांग सकते हैं?
लेकिन यह भिखारी हाथ में काम की जगह कटोरा लेना जरुर पसंद कर रहे हैं.
कड़वा सच यह है कि यह लोग भीख इसलिए मांग रहे हैं क्योकि इनको आप और हम दया के नाम पर पैसे देते रहते हैं. मज़बूरी से शुरू हुआ काम एक दिन इन लोगों का व्यवसाय बन जाता है. भीख मांगकर जब यह लोग महीने के 20 से 30 हजार कमा लेते हैं या 15 से 20 हजार कमा लेते हैं तो आखिर पूरा महीना काम करने की इनको इच्छा ही नहीं होती है.
यही कारण है कि यंगिस्थान अपनी इस खास पहल ‘भिखारी मुक्त भारत’ में बार-बार यह बात बोल रहा है कि देश का स्वर्णिम निर्माण तब तक नहीं हो सकता है जब तक भीख जैसी बीमारी हमारे देश में है. भिखारियों के मर चुके स्वाभिमान को फिर से जिन्दा करने की आवश्यकता है. इन लोगों को यह समझाना होगा कि भारत का संविधान इनको भीख मांगने का नहीं बल्कि काम करने का मौलिक अधिकार देता है.
यदि यह लोग भीख मांगना छोड़ते हैं तो देश की राज्य और केंद्र सरकार का यह नैतिक कर्तव्य बनेगा कि वह हर हाथ को काम दे.
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