ये बात बहुत कम लोग जानते है कि महाभारत के योद्धा अर्जुन को किन्नर बनना पड़ा था।
आपको बता दें कि इस बात का उल्लेख महाभारत के वनपर्व के इंद्रलोकाभिगमन पर्व में भी मिलता है।
इसमें इस कथा का विस्तार से उल्लेख किया गया है कि कैसे अर्जून को किन्नर बनना पड़ा था।
जी हाँ हम सभी जानते है कि अर्जुन इंद्र की कृपा से जन्मे थे, इसलिए उनके पिता इंद्र भी माने जाते है। जब कौरवों और पांडवों में लगातार विवाद बढ़ता जा रहा था तब युद्ध की आशंका के चलते अर्जुन अपनी शक्ति बढ़ाने में जुटे थे।
इसी दौरान अर्जुन की इस इच्छा को जानकर इंद्र ने उन्हें दिव्यास्त्रों की शिक्षा देने के लिए इन्द्रपुरी बुलाया था।
शास्त्रों के अनुसार शिक्षा लेने के दौरान इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी अर्जुन पर मोहित हो गई। आपको बता दें कि उर्वशी पुरुवंश की आदिमाता थी और उन्ही के वंशज अर्जुन भी थे। इसलिए अर्जुन ने उर्वशी को स्वीकार करने से मना कर दिया।
ये बात अतिसुंदर अप्सरा उर्वशी को नागवार गुजरी।
इस बात से उर्वशी क्रोधित हो उठी और अपनी काम पीढ़ा से परेशान होकर उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दे दिया। जिसके अनुसार अर्जुन नर्तक बन स्त्रियों के बीच रहेंगे और नपुंसक बन जायेंगे। इस श्राप से परेशान होकर अर्जुन इंद्र की शरण में गए और उन्हें पूरी बात बताई। बाद में इंद्र की कृपा से उन्हें यह वरदान मिला कि वे केवल कुछ समय तक नपुंसक रहेंगे और जब चाहेंगे तब अपना पुरुषत्व फिर से पा लेंगे।
ऐसा कहा जाता है कि जब अर्जुन अपनी माता कुंती और पांडव भाईयों के साथ तेरह वर्ष के वनवास पर गये थे।
तब उन्होंने अपने इस किन्नर रूप को इसी अवधि के दौरान उपयोग किया था।
इस तरह से योद्धा अर्जुन को किन्नर बनना पड़ा.
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