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असहिष्णुता और आमिर का बवाल, आइये मिलते है घृणा फ़ैलाने वाले असली अपराधियों से

असहिष्णुता शब्द कुछ दिनों से ज्यादा ही प्रचलित हो गया.

तीन दिन पहले आमिर खान के इंटरव्यू के बाद तो बवाल काटने की हद ही नहीं रही.

आइये आज आपको बताते है आखिर कौन कौन है देश का माहौल बिगाड़ने के पीछे जिम्मेदार.

मीडिया 

मीडिया को वैसे तो संविधान का चौथा स्तम्भ माना जाता है लेकिन आज कल जैसा हमारे देश का मीडिया हो गया है उसे देखकर तो यही लगता है ये चौथा स्तंभ नहीं ये तो देश की नींव खोदने वाला है. पिछले कुछ समय से मीडिया का व्यवहार बहुत ही शर्मनाक हो गया है. ऐसा लगता ही नहीं है कि कोई पत्रकार या समझदार लोग बोल रहे है. ऐसा लगता है कि कहीं कोई सर्कस चल रहा है और भीड़ चिल्ला रही है.

ऐसा सर्कस जिसमें जानवरों के खेल से ज्यादा महत्व सर्कस में काम करने वाली लड़कियों की टांगे दिखाकर भीड़ को आकर्षित किया जा रहा है.

जो लोग पागलों की तरह असहिष्णुता असहिष्णुता चिल्ला रहे है क्या वो अपने दिल पर हाथ रखकर सच बोल सकते है कि आखिर ऐसा क्या किया गया उनके साथ जिससे उन्हें ऐसा लगने लगा. छोटी मोटी घटनाएँ कब और कौनसे देश में नहीं होती. अच्छी ख़बरों को हाशिये पर रखकर और देश के माहौल को बिगाड़ने वाली ख़बरों को सबसे पहले और सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाने लगी है.

जैसा कि कल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन ख़बरों को 10 वें पन्नो पर होना चाहिए वो पहले पन्ने में दिखती है. एक जाल बिछाया जाता है मीडिया द्वारा अपना टारगेट पूरा करने के लिए और हम सब उस जाल में फंस जाते है.

सैंकड़ों चैनल्स की भीड़ में खुद को बचाये रखने की जद्दोजहद में आज का मीडिया किसी भी हद तक गिर रहा है.

राजनेता 

मीडिया और नेता दोनों ही एक दुसरे के बिना अधूरे है.

मीडिया एक मुद्दा तैयार करता है और नेता उसका फायदा उठाता है. आज के समय ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि देश गर्त में जा रहा है. लेकिन क्या ये सच है?

BSNL , एयर इंडिया और IRCTC  जैसे सरकार उपक्रम जो सालों से घाटे में जा रहे थे पहली बार मुनाफा दे रहे है. लेकिन इन सब के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. कारण इन सब से आम जनता का ही तो भला होगा नेता का तो नहीं. नेता ऐसी बात बोलता है जिससे वो सुर्ख़ियों में आये. जैसे कि कल भरी संसद में कांग्रेस सांसद खडगे ने कहा कि संविधान संशोधन करने पर खून की नदियाँ बह जायेगी.

असहिष्णुता को लेकर भी कांग्रेस और अन्य दल शोर मचा रहे है. लेकिन क्या इन दलों को सही में परवाह है देश की या फैलती तथाकथित असहिष्णुता की? नहीं बिलकुल नहीं. ये सब बस शोर मचाकर और छवि ख़राब करके अपना उल्लू सीधा करना चाहते है.

अगर इन्हें सही में परवाह होती तो कलबुर्गी की हत्या जितना ही बवाल ये प्रशांत की हत्या पर भी मचाते. आमिर के साथ जिस तरह खड़े हुए है उसी तरह केरला की महिला पत्रकार के साथ भी खड़े होते जिन्हें मुस्लिम कट्टरपंथियों ने धमकियाँ दी है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

सोशल मीडिया 

सोशल मीडिया एक साधन है. अपनी आवाज़ लोगों तक पहुँचाने का. शुरुआत में ऐसा हो भी रहा था, अब ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया एक अदालत बन गया है जहाँ हर कोई एक जज है.

सब अपने अपने हिसाब से चीज़ों को तौलते है और फैसले सुनाते है. सबसे कमाल की बात ये है कि इन फैसलों में तथ्य या सच का कोई स्थान नहीं होता है. इनका मकसद होता है प्रसिद्धि चार पल की प्रसिद्धि.

मेरा ट्वीट इतनी बार रीट्वीट हुआ, मेरा पोस्ट इतना शेयर हुआ, इतना लाइक हुआ और इतने कमेन्ट आये बस यही चाहिए. कौनसी बात सच है कांसी झूठ ये सब जाए भाड़ में. सामाजिक सरोकार रखने का नाटक तो ऐसे किया जाता है कि अच्छे से अच्छा कलाकार भी शर्मा जाए.

देश और देश के नागरिकों के बारे में सोचने वाले जितने लोग सोशल मीडिया में है उसके 10% भी अगर असल जीवन में मिल जाए तो देश का क्या दुनिया का भला हो जाए. पर दुःख की बात ये है कि सोशल मीडिया के क्रांतिकारियों का किसी मुद्दे के प्रति सरोकार उसके ट्रेंडिंग रहने तक ही रहता है.

सेलेब्रिटी

आमिर खान के इंटरव्यू के बाद बहुत बवाल मच रहा है.

ऐसा पहली बात नहीं हो रहा है,पहले भी अनगिनत बार ऐसा हुआ है जब किसी प्रसिद्ध हस्ती ने कुछ बोला और उसकी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली. सोचने वाली बात ये है कि आखिर ये प्रसिद्ध सेलेब्रिटी ऐसा करते क्यों है?

ये बात सही है कि वो भी आपके और मेरी तरह इंसान है और उन्हें भी अपनी बात कहने का हक है. समस्या ये है कि इन प्रसिद्ध हस्तियों के सामाजिक सरोकार या आवाज उठाने जैसी चीज़ें आम दिनों में नहीं देखने को मिलती.

इन सबका सरोकार पनपता है या तो जब इनकी फ़िल्में आती है तब या फिर कोई गर्मागर्म मुद्दा चल रहा हो और इन्हें अपने हिस्से की लाइमलाइट लेनी होती है.

आमिर खान ने तो एक झटके में देश को असहिष्णु बोल दिया लेकिन जब बड़ी बड़ी आतंकी घटनाओं के बाद भी लोग कहते है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं तो फिर एक दो छोटी छोटी घटनाओं के बाद कैसे पूरे देश पर असहिष्णु होने का धब्बा लगा सकते है.

आम जनता 

जी हाँ आम जनता मतलब आप और हम जैसे लोग. माहौल बिगाड़ने के लिए जितने ऊपर बताये गए कारक जिम्मेदार है उतने ही हम भी.

वो लोग हमें एक खुराक देते है, हमारे सामने एक जाल फेंकते है और हम लोग अलग अलग कारणों से अंधे होकर उनके जाल में जाकर फंस जाते है. जैसे कभी धर्म के नाम पर जाल में फांसा जाता है, कभी डराकर तो कभी असहिष्णुता जैसे झूठे मुद्दे बनाकर.

ज़रा सोचिये जिस दिन आम जनता ने इन झूठ और फरेब के जाल में फंसने से इनकार कर दिया, ऐसे वैसे बयानों और लोगों को तवज्जो देनी बंद कर दी उस दिन घृणा का व्यापार अपने आप ही बंद हो जाएगा. आखिर आम जनता ही तो है इन घृणा के व्यापारियों की सबसे बड़ी ग्राहक.

देखा आपने कोई भी समस्या या कोई भी घटना किसी एक कारण से पैदा नहीं होती धीरे धीरे, स्तर दर स्तर बनायीं जाती है अगर इस जंजीर की एक भी कड़ी को तोड़ दिया जाए तो झूठ, फरेब, दर, आतंक और घृणा का जहर हमारे देश में फैलने से पहले ही खत्म हो जायेगा.

तो आइये प्रण करते है कि हम अपनी बुद्धि और विवेक से काम लेकर हर मुद्दे और घटना के बारे में सोच विचारकर अपनी प्रतिक्रिया देंगे.

आखिर ये देश हमारा है और इसके अमन चैन की जिम्मेदारी भी हमारी ही है ना, है कि नहीं ?

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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