सन 1653 में बना ताज महल आज, सन 2015 में भी उतनी ही मजबूती से खड़ा है.
यह शाह जहान का प्यार ही है जो ताज महल को आज भी ताकत दे रहा है, लेकिन बदलते परियावरण और तीक्ष्ण जल-वायू के कारण ताज महल का बाहरी हिस्सा 21वी सदी के शुरुआती सालों में कुछ-कुछ दूषित होने लगा.
एक गवर्नमेंट सर्वे ने बताया है कि ताज महल पर फिर एक बार प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है.
आगरा और उसके आस-पास के इलाकों में प्रदूषण काफी ज़ोर-शोर से बढ़ रहा है और इसी कारण से आगरा में मानसून के दौरान acid rain होती है जो कि ताज महल के सफ़ेद संगमरमर को दूषित कर उसे पीला रंग दे रहा है. यह बात ताज महल के लिए बिलकुल अच्छी नहीं है.
जो काम 350 सालों के युद्ध और प्राकृतिक आपदाएं नहीं कर पाईं, बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों से निकलते धुए ने वह काम महज़ कुछ दशकों में कर डाला.
ताज महल एक UNESCO World Heritage Site है.
भारतीय गवर्नमेंट इसी वजह से 1998 से लेकर आज तक ताज महल के संरक्षण के लिए हर साल बजट जाहिर करती है. गवर्नमेंट द्वारा सभी कोशिशों के बाद भी ताज महल का पीला हो चूका संग मरमर अब सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है.
आगरा के आस-पास के इलाकों में कई तरह की इंडस्ट्रीयां फल-फूल रही हैं और इसलिए वहाँ पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां भी खड़ी कर दी गई हैं जो लगातार 24 घंटे धुंए को वातावरण में छोडती रहती हैं. इसके अलावा, गाड़ियों की बढती तादात भी, वातावरण में आई अस्थिरता का बड़ा कारण बताई जा रही है.
इनके कारण वातावरण दूषित होता है और acid rain की संभावना बढ़ जाती है और acid rain होने पर आगरा के अन्य ऐतिहासिक स्मारकों के साथ-साथ ताज महल का हुलिया भी धीरे-धीरे खराब होने लगा है.
अगर आप नज़दीक से देखें तो आपको यकीनन पीली हो चुकी संगमरमर की सलीबें ज़रूर दिखेंगी.
1996 में सुप्रीम कोर्ट ने आगरा शहर की फैक्ट्रियों में इस्तेमाल हो रहे कोयले पर रोक लगा दी थी और natural gas का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी. लेकिन इस सब से अब तक कोई सुधार नहीं आ पाया है.
जिस तरह प्रधान मंत्री मोदी, गंगा नदी के शुद्धिकरण पर इतना फोकस कर रहे हैं, अगर वे ताज महल पर भी ध्यान दें तो शायद यह प्यार का प्रतीक और हिन्दुस्तान का प्रतीक, आनेवाले समय तक बचा रहे ताकी आगे आनेवाली पीढ़ी इस महान स्मारक से और इसके पीछे के इतिहास से वंचित ना रहे.