(शुरुआत में ही आपको बता दें कि यह अभी की कोई ताजा रिपोर्ट नहीं है बल्कि हम साल 2014-15 के मैगी विवाद की बात कर रहे हैं.)
साल 2015 में अचानक से ही मैगी विवाद सामने आ जाता है और एक-एक करके राज्यों से मैगी गायब होने लगती है.
वैसे मैगी के नुकसान को अब से कुछ 10 साल पहले भी बता दिया गया था. लेकिन तब यदि स्वर्गीय राजीव दीक्षित कुछ बोलते थे तो उनका बोला किसी पर असर नहीं करता था. मैगी दो मिनट में बनती थी इसलिए लोग इसको बड़ी शान से घरों में बना रहे थे.
दरअसल मैगी विवाद उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था. मैगी में लेड का इस्तेमाल 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. लेकिन देशभर के सैंपलों में 3.8 फीसदी लेड पाया गया था. उत्तर प्रदेश से निकली यह आग धीरे-धीरे दिल्ली, केरल, गुजरात, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु तक पहुँच गयी थी. लेकिन अब सवाल यह उठता है कि आखिर साल 2015 में ही मैगी विवाद क्यों शुरू हुआ? क्या इससे पहले किसी संस्था ने मैगी की जांच की थी? क्या मैगी ने अचानक से साल 2015 में ही लोगों की सेहत से खेलना शुरू किया था?
असल में कई स्वदेशी लोग तो साल 2001 से ही चिल्ला रहे थे कि मैगी की जांच करो, मैगी खाना बंद करो किन्तु हम ना जाने क्यों मैगी प्यार में इतना अंधे थे कि कोई आवाज सुनते ही नहीं थे.
असल में 2015 में हुआ क्या था?
साल 2014 के अन्दर मैगी ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई की थी. आंकड़ों के अन्दर इस साल मैगी ने 9 हजार 806 करोड़ की कमाई कर नया कीर्तिमान दर्ज किया था. लेकिन अचानक से ही साल 2015 में उत्तर प्रदेश का खाद्य विभाग मैगी के एक सैंपल की जांच करता है और बताता है कि मैगी में जहर है. इसके अन्दर लेड और केमिकल फ्लेवर मिले हुए हैं जो इंसान के खाने की चीजें नहीं हैं. वैसे उत्तर प्रदेश के यह सैंपल साल 2014 के मार्च महीने के थे. लेकिन इनकी जांच में शायद इतना वक़्त लग जाता है कि मैगी पर बैन काफी बाद में लग पाता है.
ऐसे में कोई नहीं जानता है कि हमने और हमारे बच्चों ने कितनी मात्रा में अब तक जहर को खा लिया है.
लेकिन मैगी ने ऐसा क्यों किया?
अब इस जहरीली मैगी के बाद आज तक इस सवाल का जवाब मैगी भी नहीं दे पाई है कि आखिरकार मैगी ऐसा क्यों करेगी? मैगी जो भारत से करोड़ों खरबों कमा रही है वह भारत के लोगों को जहर क्यों खिलाएगी? अब ऐसे में सवाल यह है कि या तो मैगी शुरू से ऐसी ही थी या फिर मैगी ने अब किसी से पंगा ले लिया था शायद तभी उसकी पोल खुल रही थी.
मैगी अपने सैंपल लेकर विदेशों में जाती है और वहां से क्लीन चिट लेकर भारत आती है. किन्तु वह भूल जाती है कि उसके अंतर्राष्ट्रीय जांच के कागजी टुकड़े भारत में नहीं चलने वाले हैं. इसलिए वह फिर से नई मैगी बनाती है और बाजार में आ जाती है.
कोई इन सवालों के जवाब दे दो बस –
अब हम कैसे पहचाने कि आज वाली मैगी नई है?
क्या पता कंपनी ने नये पैकेट में पुराना माल भर दिया हो. क्योकि अगर मैगी सच्ची होती और उसकी भावनायें सच्ची होती तो इस कंपनी से इतनी बड़ी गलती नहीं हो सकती थी.
चलिए एक बार को मान लेते हैं कि मैगी सच्ची है क्योकि मैगी के बैन के समय ही बाबा की मैगी भी बाजार में आई थी. बाबा की मैगी ने इतनी तेजी से प्रथम स्थान इसीलिए प्राप्त कर लिया है क्योकि तब दो मिनट वाली मैगी पर बैन था.
तो ऐसे में सच और झूठ का फैसला करना वाकई मुश्किल है कि क्या हमारी दो मिनट वाली मैगी के खिलाफ कोई साजिश हुई थी या फिर यह मैगी वाकई जहरीली थी?
आज पैसों के दम पर भारत में क्या सब नहीं हो सकता है. मैगी जैसा केस अगर कोई कंपनी अमेरिका में करती तो शायद वहां उस कंपनी को हमेशा के लिए बैन कर दिया जाता. लेकिन यह भारत है और यहाँ कुछ भी असंभव नहीं है.
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