इंटरनेट का मालिकाना हक़ – आज के इस युग में इंटरनेट की बहुत अहमियत हो चुकी है।
सरकार से लेकर बड़ी-बड़ी उद्योग कम्पनियां भी इंटरनेट के अधीन हैं। खास आदमी से लेकर सरकार के खुफिया दस्तावेजों तक की जानकारी इंटरनेट पर मौजूद है। तो सोचिये अगर इंटरनेट किसी के अधीन होता या किसी व्यक्ति, देश या कम्पनी के अधिकार में होता तो वो पूरी दुनिया पर राज करता और दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति होता।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इंटरनेट किसी का मोहताज हो या उस पर कोई अपना मालिकाना अधिकार जता सके।
इंटरनेट को नियंत्रण में लाने को लेकर अकसर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहस चलती रहती इसे नियंत्रण में लिया जाए या नहीं। वैसे देखा जाए तो अमेरिका का इंटरनेट पर काफी हद तक दबदबा है क्योंकि ICANN (इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइंड नेम्स एंड नम्बर्स) जैसी मूलभूत कम्पनियां अमेरिका में ही स्थित हैं जिसके कारण इंटरनेट का मालिकाना हक़ अमरिका का माना जाता है।
इंटरनेट का मालिकाना हक़ वैसे किसीके पास नहीं है – इंटरनेट पर किसी का भी एकछत्र राज नही है लेकिन कई देशों का मानना है कि बढते साइबर क्राइम को देखते हुए इंटरनेट को सरकार के अधीन होना चाहिए ताकि इसका कोई दुरुपयोग ना कर सके।
3.7 बिलियन इंटरनेट यूज़र्स जितनी बडी जनसंख्या को इंटरनेट प्रदान करने के लिए इंटरनेट एड्रेसिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें सर्विस प्रोवाइडर का नाम दिया गया है।
दुनियाभर के सभी इंटरनेट यूज़र्स के लिए इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए सर्विस प्रोवाइडर को तीन भागो में बांट गया है। पहले स्तर पर सर्विस प्रोवाइडर्स को दुनिया से जोड़ने वाली कम्पनियां आती हैं और दूसरे स्तर की कम्पनियां सर्विस प्रोवाइडर्स को राष्ट्रीय स्तर पर जोडती हैं। लेकिन आम जनता तक तीसरे स्तर के सर्विस प्रोवाइडर्स बड़ी-बड़ी कम्पनियों से जुड़कर इंटरनेट प्रदान कराते हैं।
देखा जाए तो इंटरनेट किसी के भी अधीन नही है और ना ही इस पर कोई अपना मालिकाना अधिकार जता सकता है।